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________________ शतक ११. - उदेशक १. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ૨૦૪ १०. [प्र० ] ते णं मंते जीवा किं सायावेयगा असायावेयगा १ [४०] गोयेमा ! सायावेदप वा असायावेयर वा अभंगा। ११. [४०] ते णं भंते ! णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं उदई अणुदई ? [अ०] गोयमा ! जो अणुदई, उदई वा, उदइणो वा । एवं जाव अंतराइअस्स । १२. [४०] ते णं मंते । जीवा णाणावरणिजस्तं कम्मस्स किं उदीरगा अणुदीरगा [अ०] गोयमा ! नो अणुदीरगा, उदीरण वा उदीरगा वा । एवं जाव अंतराइअस्स । नवरं वेयणिजा - उपसु अट्ठ भंगा . १३. [ प्र० ] ते णं मंतें ! जीवा कि कण्हलेसा, नीललेसा, तेउलेसा ? [अ०] गोयमा ! कण्हलेसे वा, जाव तेउलेसे वा कण्हलेस्सा वा नीललेस्सा वा काउलेस्सा या तेउलेस्सा वा । अहवा कण्हलेसे य नीललेस्सें य, एवं एप दुयासंजोग - तियासंजोग - चउक्कसंजोगेणं असीती भंगा भवंति । १४. [प्र० ] ते णं भंते! जीवा किं सम्मद्दिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी ? [30] गोयमा ! नो सम्मद्दिट्ठी, मो सम्मामिच्छादिट्ठी, मिच्छादिट्ठी वा मिच्छादिट्टिणो वा । १५. [] ते ते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? [30] गोयमा ! नो नाणी, अन्नाणी वा, अन्नाणिणो वा । १६. [प्र० ] ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी ? [30] गोयमा ! णो मणजोगी, णो वयजोगी, कायजोगी था, कायजोगिणो वा । १०. [प्र०] है भगवन् ! ते [ उत्पलना ] जीवो साताना वेदक छे के असाताना वेदक छे ! [उ०] हे गौतम ! ते जीवो साताना वेदक छे अने असाताना पण वेदक छे. अहीं पूर्व प्रमाणे आठ भांगा कहेंका. कर्मनो उदय. ११. [प्र०] हे भगवन् ! तें [ उत्पलना ] जीवो ज्ञानावरणीय कर्मना उदयषाळा छे के अनुदयवाळा छे ! [30] हे गौतम! तेओ ज्ञानावरणीयादि ज्ञानावरणीयकर्मना अनुदयवाळा नथी, पण एक जीव उदयवालो के अथवा अनेक जीवों उदयवाळा छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म संबंधे जाणवुं. १२. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते [ उत्पलना ] जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना उदीरक छे के अनुदीरक छे ! [उ०] हे गौतम! 'तेओ अनुदीरक नथी, पण एक जीव उदीरक छे, अथवा अनेक जीवो उदीरक छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म सुधी जाणवुं परन्तु विशेष ए छे के वेदनीयकर्म अने आयुषकर्ममां पूर्ववत् (सू० ८) आठ भांगा कहेवा. १३. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते [ उत्पलना ] जीवो कृष्णलेश्यावाळा, नीललेश्यावाळा, कापोतलेश्यावाळा के तेजोलेश्यावाळा होय ! [उ०] हे गौतम ! एक जीव कृष्णलेश्यावाळो, यावत् एक तेजोलेश्यावाळो होय, अथवा अनेक जीवो कृष्णलेश्यावाळा, नीललेश्यावाळा, कापोतलेश्यावाळा अने तेजोलेश्यावाळा होय, अथवा एक कृष्णलेश्यावाळो अने एक नीललेश्यावाळो होय. ए प्रमाणे द्विकसंयोग, त्रिकसंयोग अने चतुष्कसंयोग वडे सर्व मळीने * एंशी भांगा कहेवा. १४. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते [ उत्पलना ] जीवो सम्यग्दृष्टि छे, मिथ्यादृष्टि छे, के सम्यगुमिध्यादृष्टि छे ! [ उ०] हे गौतम! दृष्टि सम्यग्दृष्टि के तेओ सम्यग्दृष्टि नथी, सम्यग्मिथ्यादृष्टि नथी, पण एक जीव मिथ्यादृष्टि छे, अथवा अनेक जीवो मिथ्यादृष्टिओ छे. के मिध्यादृष्टि १ १६. [प्र० ] हे भगवन् ! शुं ते [ उत्पलना ] जीवो मनयोगी, वचनयोगी के काययोगी छे ! [उ०] हे गौतम ! तेओ मनयोगी नथी, वचनयोगी नथी, पण एक काययोगी छे अथवा अनेक काययोगिओ छे. १५. [प्र०] हे भगवन् ! ते [ उत्पलना ] जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छे ! [उ०] हें गौतम ! ते ज्ञानी नथी, पण एक पान वानी के अशा · अज्ञानी छे, अथवा अनेक अज्ञानीओ छे. नी १ १३. * उत्पल वनस्पतिकायिक होवाथी तेमां प्रथमनी चार लेश्याओ होय छे. एकयोगे एक जीवना चार तथा अनेक जीवोना चार भांगा मळीने तेभोना आठ भांगा थाय छे. द्विकसंयोगमा एक अने अनेकनी चउभंगी थाय छे. कृष्णादि चार लेश्याना छ द्विकसंयोग थाय छे, तेने पूर्वोक चउभंगी साथै गुणतां द्विकयोगी चोवीश विकल्पो थाय छे. चार लेश्याना त्रिकयोगी आठ विकल्प थाय छे, तेने पूर्वोक चउभंगी साथे गुणतां त्रिकसंयोगी बत्रीश विकल्पो थाय छे, अने चतुःसंयोगे सो विकल्पो थाय छे, सर्व मळीने एंशी भांगा थाय छे. २७ भ० सू० उदीरक. Jain Education International लेश्या. For Private & Personal Use Only योग-मनयोगी वचनयोगी के काययोगी ? www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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