________________
शतक ९. - उद्देशक ३३.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
*
४२. [प्र०] देवकिञ्चिसिया णं भंते! केसु कम्मादाणेसु देवकिचिसियत्ताए उववत्तारो भवन्ति ? [३०] गोयमा ! जे इमे जीवा आयरियपडिणीपा उवज्झायपडिणीया, कुलपडिणीया, गणपडिणीया, संघपडिणीया आयरियडवज्झायाणं अयस करा, अवन्नकरा, अकित्तिकरा, बहूहिं असम्भावुब्भावणाहिं, मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं परं च तदुभयं च बुग्गामाणा, पारमाणा बहूई बालाई सामन्नपरियागं पावनंति पाउणित्ता तस्स द्वाणस्स अणालोइयपडियंता कालमासे काल किया अनयरेसु देवकिञ्जिखिसु देवकिम्बसियता उपयसारो भवति तं जहातिपलिओचमद्वितिय वा तिसागरोपमद्वितिरसु या तेरससागरोवमद्वितियसु वा ।
3
४३. [प्र० ] देवकिखिसिया णं भंते! ताओ देवलोगात्री आठवणं, भवस्वपूर्ण डिईक्वणं अतरं वयं चत्ता कहिं गच्छति कहि उपपति ? [४०] गोयमा जाव बतारि पंच नेरइयतिरिफ्यजोणिय मजुरस- देवभवम्हणाई संसारं अनुपरिपट्टित्ता तभ पच्छा सिद्धांति, युज्यंति, जाब अंत करेंति अत्थेगया अगादी अणवद्दीहमदं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियहंति ।
४४. [प्र०] जमाली भंते! अणगारे अरसाहारे, बिरसाहारे, अंताहारे, पंताहारे, लूहाहारे, तुच्छाहारे, अरसजीबी, विरसजीवी, जाव तुच्छजीवी, उवसंतजीवी, पसंतजीवी, विवित्तजीवी ? [उ०] हंता, गोयमा ! जमाली णं अणगारे अरसा - हारे, विरसाहारे, जाव विवित्तजीवी ।
४५. [प्र० ] जति पं भंते! जमाली अणगारे अरसाहारे, विरसाहारे, जाय विविधजीवी कहां णं भंते! जमाली अणगारे कालमा कार्य किया लंतर कप्ये तेरससागरोवमट्टितिएस देवकिडिसिप देयेसु देवकिबिसियत्ताए उवयन्ने ? [०] गोयमा ! जमाली णं अणगारे आयरियपडिणीए, उवज्झायपडिणीए, आयरिय उवज्झायाणं अयसकारण, अवन्नकारण,
जाव
पिकदेव पणे उपजे १
४२. [प्र० ] हे भगवन् ! किल्बिपिक देवो क्या कर्मना निमित्ते किल्बिपिकदेवपणे उत्पन्न थाय छे ? [ उ०] हे गौतम! कया कर्मयी किहिबजे जीवो आचार्यना प्रत्यनीक (द्वेषी), उपाध्यायना प्रत्यनीक, कुलप्रत्यनीक, गणप्रत्यनीक अने संघना प्रत्यनीक होय, तथा आचार्य अने उपाध्यायना अपश करनारा, अपर्णवाद करनारा अने अकीर्ति करनारा होय, तथा घणा असत्य अर्थने प्रगट करवायी अने मिथ्या कदाग्रहथी पोताने, परने अने बन्नेने भ्रान्त करता, दुर्बोध करता, घणा वरस सुधी साधुपणाने पाळे, अने पाळीने ते अकार्य स्थाननुं आलोचन के प्रतिक्रमण कर्या सिवाय मरणसमये का करीने कोइ पण फिल्मिपिक देवोमां किल्मिपिकदेवपणे उत्पन्न थाय छे. ते आ प्रमाणे श्रण पत्योरमनी स्थितियां प्रण गागरोपमनी स्थितिवामां के तेर सागरोपमनी स्थितियां उत्पन्न धाय.]
४३. [प्र० ] हे भगवन् ! ते किल्बिधिक देवो आयुष्यनो क्षय थवाथी, भवनो क्षय थवाथी, स्थितिनो क्षय थवाथी, तरत ते देवलोक थी च्यवने क्यां जाय - क्या उत्पन्न थाय ? [उ०] हे गौतम ! ते किल्बिषिक देवो *नारक, तिर्यंच, मनुष्य अने देवना चार के पांच भवो करी, एटलो संसार भ्रमण करीने खारपछी सिद्ध याय, बुद्ध पाय अने यावद दुःखोनो नाश करे. अने केटलाक किल्बिधिक देवो तो अनादि, अनंत अने दीर्घमार्ग चारगति संसाराटवीगां भम्या करे.
४४. [प्र०] हे भगवन्! शुं जमालि नामे अनगार रसरहित आहार करतो, बिरसाहार करतो, अंताहार करतो, प्रांताहार करतो, रूक्षाहार करतो, तुच्छाहार करतो, अरसजीवी, विरसजीवी, यावत् तुच्छजीवी, उपशांतजीवनवाळो, प्रशांतजीवनवाळो, पवित्र अनेक जीवनवाळो हतो ? [उ०] हे गौतम ! हा, जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी यावद् पवित्रजीवनवाळो हतो.
४५. [ प्र० ] हे भगवन् ! जो जमालि नामे अनगार अरसाहारी, विरसाहारी अने यावद् पवित्र जीवनवाळो हतो तो हे भगवन् ! ते जमाति अनगार मरणसमये काल करीने लांतक देवलोकमां तेर सागरोपमनी स्थितियाळा किल्मिपिक देवोमा किल्बिषक देवपणे केम उत्पन्न थयो ? [उ०] हे गौतम! ते जमालि अनगार आचार्यनो अने उपाध्यायनो प्रत्यनीक हतो, तथा आचार्य अने उपाध्यायनो अयश करनार अवर्णवाद करनार हतो यावद् ते [ मिथ्या अभिनिवेश वडे पोताने, परने अने उभयने भ्रान्त करतो ] दुर्बोध करतो, यावत् घणा
१ इमे आय-कङ । २ देवताएकङ ।
'४३. * यद्यपि 'किल्बिषिक मरीने क्यां उत्पन्न थाय ?' ए प्रश्नना उत्तरमां नारक, तिर्यंच, मनुष्य अने देवना चार पांच भवप्रहण करीने मोक्षे जाय' एमक छे, ते सामान्य कथन छे. अन्यथा देव अनं नारक मरीने देव के नारक न थाय, परन्तु तुरत तो मनुष्य के तिर्यचमां उत्पन्न भइने पछी नारक के देपमा उत्पन्न थाय. टीका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
किल्बिषिदेव मरीने क्या उपजे १
www.jainelibrary.org/