________________
१४६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ९.-उद्देशक ३२० अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होजा। अहवा दो रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए दो वालुयप्पभाए होजा; एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए दो अहेसत्तमाए होजा । अहवा एगे रयणप्पभाए तिनि सकरप्पभाए एगे वालुयप्पाए होजा; एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए तिनि सकरप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा । अहवा दो रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा; एवं जाव अहेसत्तमाए । अहवा तिन्नि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होजा; एवं जाव अहवा तिनि रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा । अहवा एगे रयणप्पभाए एगे वालयप्पभाए तिन्नि पंकप्पभाए होजा । एवं एएणं कमेणं जहा चउण्डं तियासंजोगो भणितो तहा पंचण्ह वि तियासंजोगो भाणियधो; नवरं तत्थ एगो संचारिजइ, इह दोनि, सेसं तं चेव, जाव अवा तिन्नि धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होजा।
अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए दो पंकप्पभाए होजा, पवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए दो अहेसत्तमाए होजा । अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए दो वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा; एवं जाव अहेसत्तमाए । अहवा एगे रयणप्पभाए दो सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा; एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा । अहवा दो रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होजा; एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे वालुयप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होजा । अहवा एगे रयणप्पभाए एगे सकरप्पभाए एगे पंकप्पभाए दो धूमप्पभाए होजा; रत्नप्रभामां वे शर्कराप्रभामां अने बे वालुकाप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ५ अथवा एक रत्नप्रभामां बे शर्कराप्रभामां अने बे अधःसप्तम नरकमां होय. [ 'एक बे बे' ना विकल्पने आश्रयी ए पांच भंग थया.] १ अथवा बे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने बे वालुकाप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावद् ५ अथवा बे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने बे अधःसप्तम नरकमां होय. [ 'बे एक बे' विकल्पने आश्रयी ए पांच भंग थया.] १ अथवा एक रत्नप्रभामां त्रण शर्कराप्रभामां अने एक वालुकाप्रभामां होय. ए प्रमाणे यावत् ५ अथवा एक रत्नप्रभामां त्रण शर्कराप्रभामां अने एक अधःसप्तममा होय. [ 'एक त्रण एक' ने आश्रयी पांच भंग थया.] १ अथवा बे रत्नप्रभामां वे शर्कराप्रभामां अने एक वालुकाप्रभामां होय. ए प्रमाणे यावत् ५ बे रत्नप्रभामां बे शर्कराप्रभामां अने एक अधःसप्तममा होय. [ 'बे बे एक'ने आश्रयी पांच भंग थया.] १ अथवा त्रण रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां अने एक वालुकाप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ५ अथवा त्रण रत्नप्रभामा एक शर्कराप्रभामां अने एक अधःसप्तममा होय. [ए 'त्रण एक एक'नी अपेक्षाए पांच भंग थया.] (३०).१ अथवा एक रत्नप्रभामां एक वालुकाप्रभामां अने त्रण पंकप्रभामां होय. ए प्रमाणे ए क्रमथी जेम चार नैरयिकोनो त्रिकसंयोग कह्यो तेम पांच नैरयिकोनो पण त्रिकसंयोग कहेवो. परन्तु त्यां एकनो संचार कराय छे, अहीं बेनो संचार करवो. बाकी सर्व पूर्वोक्त जाणवू; यावत् अथवा त्रण धूमप्रभामां एक तमामां अने एक अधःसप्तम नरकमां होय. (२१०).
१ अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामा एक वालुकाप्रभामां अने बे पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ४ अथवा एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां एक वालुकाप्रभामां अने वे अधःसप्तम पृथिवीमा होय. [ए चार विकल्प थया.] १ अथवा एक रत्नप्रभामा एक शर्कराप्रभामां बे वालुकाप्रभामां अने एक पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ४ एक रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामां वे वालुकाप्रभामां अने एक अधःसप्तम नरकपृथिवीमां होय. [४ भंग.] १ अथवा एक रत्नप्रभामा बे शर्कराप्रभामां एक वालुकाप्रभामां अने एक पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ४ अथवा एक रत्नप्रभामां बे शर्कराप्रभामां एक वालुकाप्रभामां अने एक अधःसप्तम नरकपृथिवीमां होय. [४ भंग.] १ अथवा बे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामा एक वालुकाप्रभामा अने एक पंकप्रभामा होय. ए प्रमाणे यावत् ४ अथवा बे रत्नप्रभामां एक शर्कराप्रभामा एक
चतुःसंयोगी १४० विकल्पो.
* चतुःसंयोगी विकल्पोनी रीति आ प्रमाणे छे-पांच नरयिकोना चतुःसंयोग '१-१-१-२' '१-१-२-१' १-२-१-१३-१-१-१ए चार प्रकारे थाय छे. तेने सात नरकना चतुःसंयोगी पांत्रीश भंगोनी साथे जोडता १४० विकल्पो थाय छे. ते आ प्रमाणे१ रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा.
११ रत्नप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा. धूमप्रभा.
तमःप्रभा. तमःप्रभा.
तमःतमःप्रभा. तमःतमःप्रभा.
धूमप्रभा, तमःप्रभा. धूमप्रभा.
तमःतमःप्रभा. तमःप्रभा. १६
तमःप्रभा, तमःतमःप्रभा.
पकप्रभा
धूमप्रभा, तमःप्रभा. धूमप्रभा, तमःप्रभा.
तमःतमःप्रभा. " तमःतमःप्रभा.
तमःप्रभा, तमःप्रभा, तमःतमःप्रभा.
धूमप्रभा, आ वीश भंगोनी साये पूर्वोक्त चार विकल्पोनो संयोग करता रमप्रभाना संयोगवाळा एंशी विकल्पो थाय छे.
पंकप्रभा,
१५
,
१८ १९
॥ ,
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org