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१२४ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ८.-उद्देशक १०. ४१.०] जस्स णं भंते! आउयं तस्स अंतराइय-पुच्छा। [उ०] गोयमा! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अत्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउयं नियम अस्थि ।
४२. [प्र०] जस्स णं भंते ! नामं तस्स गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं णाम-पुच्छा । [उ०] गोयमा! जस्स णं णाम तस्स नियमा गोयं, जस्स णं गोयं तस्स नियमा नामं; दो वि एए परोप्परं नियमा अत्थि।
४३. [प्र०] जस्स णं भंते! णामं तस्स अंतराइयं पुच्छा। उ०] गोयमा! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण अंतराइयं तस्स णामं नियमा अस्थि ।
... ४४. [प्र०] जस्स गं भंते ! गोयं तस्स अंतराइअं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जस्स णं गोयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि, सिय नत्थि; जस्स पुण अंतराइयं तस्स गोयं नियम अत्थि ।
४५. [प्र०] जीवे णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ? [उ०] गोयमा ! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि । [३०] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'जीवे पोग्गली वि पोग्गले वि' ? [उ०] गोयमा! से जहानामए छत्तेणं छत्ती, दंडेणं दंडी, घडेणं घडी, पडेणं पडी. करेणं करी. एवामेवं गोयमा! जीवे वि सोइंदिय-चक्खिदिय-धाणिदिय-जिभिदिय-फासिंदियाई पडुच पोग्गली, जीवं पडुच्च पोग्गले; से तेणटेणं गोयमा! एवं बुच्चइ-'जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि'।
४६. प्र०] नेरइए णं भंते ! किं पोग्गली. ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव वेमाणिए, नवरं जस्स जब इंदियाई तस्स तह वि भाणियव्वाई।
४७. [प्र०] सिद्धे णं भंते ! किं पोग्गली, पोग्गले ? [उ०] गोयमा! नो पोग्गली, पोग्गले । [प्र.] से केणगुणं भंते ! एवं वुच्चइ-जाव पोग्गले' ? [उ०] गोयमा! जीवं पडुच्च, से तेणटेणं गोयमा! एवं वुश्चह-'सिद्धे नो पोग्गली, पोग्गले । सेवं मंते ! सेवं भंते ! ति।
अट्ठमसए दसमो उद्देसो समत्तो।
समत्तं अट्ठमं सयं ।
मायुषकर्म अने - ४१. [प्र०] हे भगवन् ! जेने आयुष् छे तेने अन्तराय कर्म होय ? इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जेने आयुष छे तेने अन्तन्तराय कर्मनी राय कदाच होय अने कदाच न होय, पण जेने अन्तराय कर्म छे तेने अवश्य आयुष कर्म होय.
संबंध. नाम अने गोत्र ४२. [प्र०] हे भगवन् ! जेने नाम कर्म छे, तेने शुं गोत्र कर्म होय, जेने गोत्र कर्म छे तेने नाम कर्म होय-प्रश्न. उ०] हे
कर्मनो संबंध. गौतम! जेने नाम कर्म छे तेने अवश्य गोत्रकर्म होयः अने जेने गोत्रकर्म छे तेने अवश्य नामकर्म होय. ए बन्ने कर्मों परस्पर अवश्य होय. नामकर्म अने अन्त- ४३. [प्र०] हे भगवन् ! जेने नाम कर्म छे तेने शुं अंतराय कर्म होय, अने जेने अंतराय कर्म छे तेने शुं नाम कर्म होय ! रायकमनो संबन्ध.
[उ०] हे गौतम! जेने नामकर्म छे तेने अंतराय कदाच होय अने कदाच न होय, पण जेने अंतराय कर्म छे तेने अवश्य नाम
कर्म होय. गोत्रकर्म आने ४४. प्र०) हे भगवन् ! जेने गोत्रकर्म छे तेने शुं अंतराय कर्म होय? इत्यादि प्रश्न. [उ०] हे गौतम | जेने गोत्रकर्म छे तेने अन्तराय कर्मनो
__ अन्तराय कर्म कदाच होय अने कदाच न होय, पण जेने अन्तराय कर्म छे तेने अवश्य गोत्रकर्म होय. संबंध. जीव पुद्रती के ४५. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीव पुद्गली छे के पुद्गल छे ? [उ०] हे गौतम ! जीव पुद्गली पण छे अने पुद्गल
[प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के जीव पुद्गली पण छे अने पुद्गल पण छे' ? [उ०] हे गौतम ! जेम कोइ एक पुरुष छत्रवडे छत्री, दंडवडे दंडी, घटवडे घटी, पटवडे पटी अने करवडे करी कहेवाय छे तेम जीव पण श्रोत्रंद्रिय, चक्षुरिंद्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय अने स्पर्शनेन्द्रियने आश्रयी पुद्गली कहेवाय छे, अने जीवने आश्रयी पुद्गल कहेवाय छे. माटे हे गौतम ! ते हेतुथी एम.
कहेवाय छे के 'जीव पुद्गली पण छे अने पुद्गल पण छे.' रविको पुद्गली के ४६. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिक पुद्गली छे के पुदगल छे ? [उ०] हे गौतम! ते पूर्वनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे यावत् वैमा
निकोने पण कहे; परन्तु तेमा जे जीवोने जेटली इन्द्रियो होय तेने तेटली कहेवी. सियो पुद्री के ४७. [प्र०] हे भगवन् ! | सिद्धो पुद्गली छे के पुद्गल छे ? [उ०] हे गौतम ! पुद्गली नथी, पण पुद्गल छे. [प्र०] हे
भगवन् ! ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छे के सिद्धो यावत् पुद्गल छे? [उ०] हे गौतम! जीवने आश्रयी [ पुद्गल ] कहुं छु. ते हेतुथी एम कहेवाय छे के सिद्धो पुद्गली नथी, पण पुद्गल छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे.
अष्टम शतके दशम उद्देशक समाप्त.
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