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शतक ८.-उद्देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
११३ ७१. [प्र०] तेयासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कालओ केवश्चिरं होइ ? [उ०] गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-अणाइए वा अपजवसिए, अणाइए वा सपजवसिए। ____७२. [प्र०] तेयासरीरप्पओगबंधंतरं णं भंते ! कालओ केवञ्चिरं होइ ? [उ०] गोयमा! अणाइयस्स अपजवसियस्स नत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपजवसियस्स नत्थि अंतरं। ___७३. [प्र०] एएसि णं भंते ! जीवाणं तेयासरीरस्स देसवंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरोहितो जाव विसेसाहिया वा? [उ०] गोयमा! सबथोवा जीवा तेयासरीरस्स अबंधगा, देसबंधगा अणंतगुणा।।
- ७४. [प्र०] कम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ०] गोयमा ! अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहा-नाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे, जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पओगबंधे।
७५. [प्र०] णाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? [उ०] गोयमा ! नाणपडिणीययाए णाणणिण्हवणयाए, णाणंतरापणं, णाणप्पदोसेणं, णाणचासायणयाए, णाणविसंवादणाजोगेणं णाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं णाणावरणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे।
७६. [प्र०] दरिसणावरणिजफम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? [उ०] गोयमा ! दंसणपडिणीययाए, एवं जहा णाणावरणिजं, नवरं दसणनाम घेत्तवं, जाव दंसणविसंवादणाजोगेणं दसणावरणिजकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं जाव पओगवंधे।
७७. प्रि० सायावेयणिजकम्मासरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? [उ०] गोयमा! पाणाणुकंपयाए, भूयाणुकंपयाए, एवं जहा सत्तमसए दुस्समाउद्देसए जाव अपरियावणयाए सायावेयणिजकम्मासरीरप्पओगनामाए कम्मस्स उदएणं सायावेयणिजकम्मा० जाब बंधे।
७१. [प्र०] हे भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबन्ध कालथी क्यां सुधी होय ! [उ०] हे गौतम! तैजसशरीरप्रयोगबन्ध बे प्रकारनो तैजसशरीरप्रयोग कह्यो छे. ते आ प्रमाणे-१ अनादि अपर्यवसित अने २ अनादि सपर्यवसित.
बन्धनो काल. ७२. [प्र०] हे भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबन्धनुं अन्तर कालथी क्यां सुधी होय ! उ०] हे गौतम ! अनादि अपर्यवसित अने जसशरीरप्रयोग अनादि सपर्यवसित ए बन्ने प्रकारना तैजसशरीरप्रयोगबन्धनुं अन्तर नथी.
पन्धन अन्तर. ७३. [प्र०] हे भगवन् ! ए तैजसशरीरना देशबन्धक अने अबन्धक जीवोमां कया जीवो कया जीवोथी यावद् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम ! तैजसशरीरना अबन्धक जीवो सौथी थोडा छे, तेथी देशबन्धक जीवो अनन्तगुण छे. ____७४. प्र०] हे भगवन् ! कार्मणशरीरप्रयोगबन्ध केटला प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] हे गौतम ! आठ प्रकारनो कह्यो छे, ते कार्मणशरीर प्रयोग आ प्रमाणे-ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध, यावद् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध.
७५. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ? [उ०] हे गौतम! ज्ञाननी प्रत्यनी- शानावरणीय कामकताथी, ज्ञाननो अपलाप करवाथी, ज्ञाननो अन्तराय–विघ्न करखाथी, ज्ञाननो प्रद्वेष करवाथी, ज्ञाननी अत्यन्त आशातना करवाथी, ज्ञानना
णशरीर प्रयोगबन्ध
TITTA विसंवादन योगथी अने ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी ज्ञानावरणीयकामणशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.
थाय ?
७६. प्र०] हे भगवन् ! दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! दर्शननी दर्शनावरणीयकाम
णशरीरप्रयोगबन्ध अत्यनीकताथी-इत्यादि जेम ज्ञानावरणीयना कारणो कह्या छे तेम दर्शनावरणीय माटे जाणवा; परन्तु [ज्ञानावरणीयस्थाने ] 'दर्शनावरणीय' कहे, यावद् दर्शन विसंवादनयोगथी, तथा दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी दर्शनावरणीयकामणशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.
७७. प्र०] हे भगवन् ! सातावेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगवन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे! [उ०] हे गौतम ! प्राणीओ उपर सातावेदनीयअनुकम्पा करवाथी, भूतो उपर अनुकंपा करवाथी-इत्यादि जेम *सप्तम शतकना दुःषमा उद्देशकमां कह्यु छे तेम कहे, यावद् तेओने परिताप नहि उत्पन्न करवाथी, अने सातावेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी सातावेदनीयकामणशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.
1-पयोगबंधंतरे ण क विनाऽन्यत्र । २-सायणाए ग। ३-नाम घे- ग-घ। ४ दसमोरे-क विनाऽन्यत्र । ७७. * भग० खं... .. . . . ..
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