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शतक ८.-उद्देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
१०५ २४. प्र० एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते? [उ०] गोयमा! पंचविहे पण्णचे, तं जहा-पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे, एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहा ओगाहणसंठाणे ओरालियसरीरस्स तहा भाणियचो, जाव पजत्तागम्भवकंतियमणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे य, अप्पजत्तागम्भवकंतियमणुस्स-जाव बंधे य ।
२५. प्र०] ओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मरस उदएणं ? [उ०] गोयमा! चीरिय-सजोग-सहधयाए पमादपञ्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च ओरालियसरीरप्पओगनामकम्मस्स उदएणं ओरालियसरीरप्पयोगबंधे।
२६. [प्र०] एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते! कस्स कम्मस्स उदएणं ? [उ०] एवं चेव, पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे एवं चेव, एवं जाव वणस्सइकाइया, एवं बेइंदिया, एवं तेइंदिया, एवं चउरिदिया।
२७. प्र०] तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं? [उ०] एवं चेव ।
२८. [प्र०] मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? [उ०] गोयमा! वीरियसजोग-सद्दधयाए पैमादपाया जाव आउयं च पडुच्च मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगर्नामकम्मस्स उदएणं ।
२९. प्र०] ओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे, सव्वबंधे ? [उ०] गोयमा! देसबंधे वि, सबबंधे वि ।
३०. [प्र० एगिदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते! किं देसवंधे, सवबंधे? [उ०] एवं चेव, एवं पुढविक्काइया, • एवं जाव- [प्र०] मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पओगबंधे णं भंते! किं देसबंधे, सबबंधे ? [उ०] गोयमा ! देसबंधे वि, सवबंधे वि।
२४. प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध केटला प्रकारनो कह्यो छे! उ०] हे गौतम ! पांच प्रकारनो एकेन्द्रियऔदारिककह्यो छे, ते आ प्रमाणे-पृथिवीकायिकएकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध; ए प्रमाणे ए अभिलापथी जेम *'अवगाहनासंस्थान' पदमा
शरीरप्रयोगवन्धः औदारिक शरीरनो भेद कह्यो छे तेम अहीं कहेवो; यावत् पर्याप्तगर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध अने अपर्याप्तगर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध. २५. प्र०] हे भगवन् ! औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे! [उ०] हे गौतम! जीवनी सिवीर्यता. औदारिकशरीरमयो
गबन्ध कया कर्मना सयोगता अने सव्यताथी, प्रमादहेतुथी, कर्म, योग, (काययोग ) भव अने आयुष्यने आश्रयी औदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी उदयया थाय छ। औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे. २६. [प्र०] हे भगवन् ! एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ! [उ०] पूर्वे कह्या प्रमाणे जाणq. एकेन्द्रियौदारिक
शरीरप्रयोगबन्ध. पृथिवीकायिकएकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध ए प्रमाणे जाणवो. ए प्रमाणे यावद् वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध, तथा बेइन्द्रिय, त्रींद्रिय अने चउरिन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध जाणवो. २७. [प्र०] हे भगवन् ! पंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ! [उ०] पूर्व प्रमाणे जाणवं.
पंचेन्द्रिय औदारिक
शरीरप्रयोगबन्ध२८. प्रि० हे भगवन् ! मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध कया कर्मना उदयथी थाय छे ! [उ०] हे गौतम ! सवीर्यता, WITH सयोगता अने सद्व्यताथी, तेम प्रमादहेतुथी, यावत् आयुष्यने आश्रयी मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी मनुष्यपंचेन्द्रिय- शरीरप्रयोगबन्ध. औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे. २९. [प्र०] हे भगवन् ! औदारिकशरीरप्रयोगबन्धनो शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छे! [उ०] हे गौतम ! देशबन्ध पण छे औदारिकशरीर
प्रयोगबन्ध देश के अने सर्वबन्ध पण छे.
सर्वबन्ध छ। ३०. [प्र०] हे. भगवन् ! एकेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्ध शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छे! [उ०] पूर्वनी पेठे जाणवं. ए एकेन्द्रियौदारिक
शरीरप्रयोगवन्ध. प्रमाणे यावत्-प्र०] हे भगवन् ! मनुष्यपंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयोगबन्धनो शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छे! [उ०] हे गौतम ! देशबन्ध ।
मनुष्य औदारिक पण छे अने सर्वबन्ध पण छे.
'शरीरप्रयोगवन्ध
१-नामाकम्म-क,-नामाए कम्म-ङ। २-पयोग एवं क, प्पयोगबंधे वि एवं ङ। पमाद-जाव क। ४ नामाए । २४. * प्रज्ञा० पद २१. प. ४०८-१. पं. १.
२५. वीर्यान्तराय कर्मना क्षयोपशम बडे उत्पन्न थयेली शक्ति ते सवीर्यता, मनोयोगादिनो व्यापार ते सयोगता, तथाविध पुद्गलादि द्रव्य ते सद्दव्यता, प्रमाद, एकेन्द्रियजातिनाम वगेरे कर्म, योग-काययोगादि, तिर्यचादि भव अने तिर्यचादिकना आयुषना लीधे उदयप्राप्त औदारिकशरीरप्रयोगनामकर्मथी औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.-टीका.
२९. जेम धृतादिकथी भरेली अने तपी गयेली कडाईमा नांखेलो अपूप (पुल्लो) प्रथम रामये घृतादिकने केवळ प्रहण करे, अने याकीना समये प्रहण करे अने छोडे, तेम आ जीव ज्यारे पूर्वना शरीरने छोडीने बीजं शरीर प्रहण करे त्यारे प्रथम समये उत्पत्तिस्थानके रहेला शरीरयोग्य पुद्गलोने केवळ प्रहण करे छे, माटे आ सर्वबंध छ; त्यार पछी द्वितीयादि समये (शरीरप्रायोग्य पुद्गलोने) ग्रहण करे छे अने छोडे ठे माटे वे देशबन्ध छे, तेथी औदारिकशारीरनो देशबंध पण होय छै अने सर्वबन्ध पण होय छे-टीका.
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