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________________ शतक ८.-उद्देशक ८. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ३५. [प्र०अबंधगस्स णं भंते ! अयोगिभवत्थकेवलिस्स कति परीसहा पण्णत्ता ? [उ०] गोयमा! एक्कारस परीसहा पन्नत्ता, नव पुण वेदेइ । जं समयं सीयपरीसहं वेदेति नो तं समयं उसिणपरीसहं वेदेइ, जं समयं उसिणपरीसहं वेदेति नो तं समय सीयपरीसहं वेदेइ, जं समयं चरियापरिसहं वेदेइ नो तं समयं सेजापरीसहं वेदेति, जं समयं सेज्जापरीसहं वेदेड नो तं समयं चरियापरीसहं वेदेइ । ३६. [प्र०] जंबुद्दीचे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मुले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति ? [उ०] हंता, गोयमा! जंबुद्दीवे पं. दीवे सूरिया उग्गमणमुहत्तंसि दूरे य, तं चेव जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मुले य दीसंति । ३७. [प्र.] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि मज्झतियमुहुत्तंसि य अत्थमणमुहुत्तंसि य सवत्थ समा उच्चत्तेणं? [उ०] हंता, गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण जाव उच्चत्तेणं । ३८. [प्र०] जइ णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि, अस्थमणमुहुत्तंसि य मूले जाव उच्चत्तेणं, से केणं खाइ अटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, जाव अत्थमणमुहुत्तंसि दुरे य मूले य दीसंति ? [उ०] गोयमा! लेसापडिघाएणं उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, लेसाभिता झंतियमुहुर्तसि मूले य दूरे य दीसंति, लेस्सापडिघाएणं अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति; से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति; जाव अस्थमण- जाव दीसंति ।। ३९. [प्र०] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिया किं तीयं खेत्तं गच्छंति, पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति, अणागयं खेत्तं गच्छंति ! [उ०] गोयमा ! णो तीयं खेत्तं गच्छंति, पडुप्पन्नं खेत्तं गच्छंति, नो उ.णागयं खेत्तं गच्छंति । ४०. [प्र०] जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया किं तीयं खेत्तं ओभासंति, पडुप्पन्नं खेत्तं ओभासंति, अणागयं खेत्तं ओभासंति ? (उ०] गोयमा ! नो तीय खेत्तं ओभासंति, पडुप्पन्नं खेत्तं ओभासंति, नो अणागयं खेत्तं ओभासंति । ३५. [प्र०] हे भगवन् ! कर्मबन्धरहित अयोगी भवस्थ केवलज्ञानीने केटला परीषहो कह्या छे! [उ०] हे गौतम! अगीयार परीषहो कमपन्धरहित कह्या छे; तेमा साथे नव परीषहोने वेदे छे; कारण के जे समये शीतपरीषहने वेदे छे ते समये उष्णपरीषहने वेदता नथी, अने जे समये अयोगी केवलीने परिषदो. उष्णपरीषहने वेदे छे ते समये शीतपरीषहने वेदता नथी. तथा जे समये चर्यापरिपहने वेदे छे ते समये शय्यापरीषहने वेदता नथी, अने जे समये शय्यापरीषहने वेदे छे ते समये चर्यापरीषहने वेदता नथी. - ३६. [प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपनामे द्वीपमा बे सूर्यो उगवाना समये *दूर छतां पासे देखाय छे, मध्याह्नसमये पासे छता दूर जंबूद्वीपमा स्यों दूर देखाय छे, अने आथमवाने समये दूर छतां पासे देखाय छे ? [उ०] हा, गौतम ! जंबूद्वीपमां बे सूर्यो उगवाना समये दूर छतां पासे एता देखाय छे देखाय छे-इत्यादि, यावद् आथमवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे. . ३७. प्रि०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा बे सूर्यो उगवाना समये, मध्याह्नसमये अने आथमवाना समये सर्व स्थळे उंचाइमां सरखा सूर्यो सर्वत्र उंचा 'छे ! [उ०] हा, गौतम ! जंबूद्वीपमा रहेला वे सूर्यो उगवाना समये यावत् सर्वस्थळे उंचाइमां सिरखा छे... इमा सरखा है। ३८. [प्र०] हे भगवन् ! जो जंबूद्वीपमां बे सूर्यो उगवाना समये, मध्याह्नसमये अने आथमवाना समये यावद् उंचाइमां सरखा छे तो तेजना प्रतिषा तथी दूर छा हे भगवन् ! एम शा हेतुथी कहो छो के जंबूद्वीपमा बे सूर्यो उगवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे, यावद् आथमवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे. पासे देखाय छे ? [उ०] हे गौतम! लेश्याना (तेजना) प्रतिघातथी उगवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे, लेश्याना-तेजना अभिता- तेजना भमिताप बी पासे छता दूर पथी मध्याह्न समये पासे छतां दूर देखाय छे, तथा लेश्याना प्रतिघातथी आथमवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे, माटे हे गौतम ! ते देखाय छे. हेतुथी एम कहेवाय छे के जंबूद्वीपमां वे सूर्यो उगवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे, याबद् आथमवाना समये दूर छतां पासे देखाय छे. ३९. [प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमां वे सूर्यो शुं अतीत क्षेत्र प्रति जाय छे, वर्तमान क्षेत्र प्रति जाय छे, के अनागत क्षेत्र प्रति जाय भतीत क्षेत्र प्रति छे! उ०] हे गौतम! अतीत क्षेत्र प्रति जता नथी, वर्तमान क्षेत्र प्रति जाय छे, पण अनागत क्षेत्र प्रति जता नथी. जाय छे ।-इत्यादि प्रश्न ४०. प्र०] हे भगवन् ! जंबूद्वीपमा बे सूर्यो शुं अतीत क्षेत्रने प्रकाशे छे. वर्तमान क्षेत्रने प्रकाशे छे के अनागत क्षेत्रने प्रकाशे भतीतक्षेत्रने प्रकाछे! [उ०] हे गौतम ! अतीत क्षेत्रने प्रकाशंता नथी, वर्तमान क्षेत्रने प्रकाशे छे, अने अनागत क्षेत्रने प्रकाशता नथी. से छे!-इत्यादि प्रश्न. वर्तमान क्षेत्रने प्रकाशे छे. ३६. * उगवाना अने आथमवाना समये द्रष्टाना स्थाननी अपेक्षाए सूर्य दूर छे पण द्रष्टाने 'नजीक छ' एम प्रतीति थाय छ, द्रष्टा उगवा अने आथमघाना समये हजारो योजन दूर सूर्यने जुए छे, अने नजीका होय एम तेने लागे छे, पण मध्याह्नसमये द्रष्टाना स्थाननी अपेक्षाए सूर्य नजीक छतां पण तेने दूर होय एम लागे छे. द्रष्टा उदय अने अस्त समयनी अपेक्षाए मध्याह्नसमये नजीक सूर्यने जुए छे, केमके ते वखते मात्र आठसो योजन- अन्तर छे, पण तेने उदय अने अस्तसमयनी अपेक्षाए दूर माने छे. तेनुं कारण (सू, ३८ मां ) बताव्युं छे.-टीका. ३७. 1 समभूतल पृथिवीनी अपेक्षाए सूर्यो सर्वत्र आठसो योजन उंचा छे-टीका. ३९. 1 अतीत क्षेत्र अतिक्रान्त करेलं होवाथी ते तरफ जतो नथी, पण वर्तमान एटले ज्या जवानुं छे ते क्षेत्र तरफ जाय छे. वळी अनागत एटले ज्यो जवाशे ए क्षेत्र तरफ पण जतो नथी.-टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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