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________________ शतक ३. उद्देशक १. पू० १-४६. मोका नगरी. - नंदन चैत्य. श्रीमहावीर प्रभुनुं आगमन अने अग्निभूतिनी पर्युपासना विकुर्वणा (रूपो फेरववानी शक्ति). चमरेंद्र, त्रायस्त्रिंशो, सामानिको अने पहराणीओ अभिभूति अने वायुभूति वायुभूतिने संदेह वायुभूति अने श्रीमहावीर. - संदेहनुं निवारण वायुभूतिनी अझिभूति प्रत्ये क्षमानी याचना वायुभूति, अमित भने श्रीमहार दक्षिशे अने अभिभूति उत्तरेंदो अने वायुभूति तिष्नी विना अभिभूतियो विहार, मायुभूति ईशानेंद्र दस अने विकुर्वणा यावत् अच्युत देवलोक [श्रीमदावीर प्रभुनो विहार राजगृहमां आगमन उत्तरार्धना इंड प्राणामा आगमन, देवर्द्धि दर्शन अने संहरण. देवर्द्धि संबंधे प्रश्न. कूटाकार शाळानुं दृष्टांत. देवर्द्धिनी प्राप्तिनो उपाय. मैर्यपुत्र तामली. प्रज्या द्रमा बलिचा देव संमेलन देवोनो सामलीने पोताना दवा मासाह, निवाणु न करणाची तामसी ईनेंद्रपणे थवं. ते वातनी बलिचंचामां जाण. क्रोधेला बलिचंचावासीओए तामलीना शबनी करेली अवगणना. ईशानवासीओ द्वारा ईशानेंद्र ( तामली) ने जाण. कोपेला ईशानेंद्रनी दृष्टिनो प्रभाव. बलिचंचानुं बळवं. देवोनी नाशभाग. ईशानेंद्रनी बलि वेचावासीओए करेली प्रार्थना. हिरण ईशा आशामली ) मुश्कि उत्तरार्धमा अने दक्षिणार्थना इदोनो मेलाप, वासी स विवाये समरकुमारचं स्मरण निवेडो सनत्कुमारचं भव्य उद्देश समाप्ति भने बिहार शतक ३. उद्देशक २० पृ० ४७-७२. राजगृह - पर्षत् महावीर अने गौतम असुरो क्यों रहे छे ? रत्नप्रभा पृथिवीनी बच्चे. असुरोनुं नीचली तृतीय ( वालुकाप्रभा ) पृथिवी सुधी थएलं गगन भने साते पृथिवी सुभी असुरो जवानुं सामर्थ्य गमननो हेतु पूर्वादेरिने सीकर के पूर्वनामित्री करवो. असुरो तिरछे नंदीश्वर द्वीप सुभी ए गमन भने तिरछे अस्य द्वीप समुद्रो मुधी या समन तिरका गमन हेतु अनि मनो निष्क्रमणमोहनोत्पादन अने परिनिर्वाणनो महिमा अनुरोध देवलोक सुधी थए मत देवलोक सुधी जवानुं सामर्थ्य ऊर्ध्वगमननो हेतु देव अने असुरोनुं वैर असुरोनुं चोरपणं. असुरोने देवीए करेली सजा. असुरो अने अप्सराओ. असुरों ऊर्ध्वगमन केटलो काळ वील्या पछी थाय छे ! अनंत उत्सर्पिणी अने अनंत अवसर्पिणी. शबर बर्बर ढंकण. भत्तुअ. पण्ह. पुलिंद अरिहंत विगेरेना आशराधीन असुरो अधुरो मन कच्वंगमन माडे चगरनी बात पर पूर्वजन्म जम्बूद्वीप भारतपने विध्यगिरिपादमूळ. वेमेल संनिवेश, पूरण गृहपति. मुंड थडं. दानामा प्रव्रज्या. चार खानावालुं काष्ठपात्र. मळेल भिक्षावडे वटेमार्ग, कागडा, कूतरा अने माछला, काचवा वगेरेनुं आतिथ्य. पूरणनो उग्रतप. पूरणनुं पादपोपगमन अनशन. छद्मस्थ तरिके महावीरनां अग्यार वर्ष. सुसमारपुर नगर. इंद्र विनानी चमरचंचा नगरी तपस्वी तरीके पूरणनां बार वर्ष मासिक संलेखना. साठ टंक अनशन, चमरचंचामां इंद्र. चमर तरीके पूरणनो जन्म. चमरे करेलो सौधर्म देवलोकनो साक्षात्कार. मघवा, पाकशासन, शतक्रतु, सहस्राक्ष, वज्रपाणि अने पुरंदर, शक्रेंद्रना विलासा जाई चमरने थएली ईर्ष्या, शक्र प्रति चमरनुं गालिप्रदान, चमरना भयावह ईर्ष्यानल छद्मस्थ महावीरने चमरे सीधेल आश्रय परिध आयुधने लइने एकला (क) प्रति करेतुं प्रयाग प्रदान पूर्वे चमरे राम र उपर जज चमरे करेल उत्पात, वानव्यंतर देवानी भागनाश ज्येतिषिकाना विभाग. आत्मरक्षक देवानुं पलायन, चमरनुं शकपासे पहचवु शकता दरवाजा बच्चे रहेल इन्द्रकीलनुं चमरे करेल आकुट्टन शक्राश्रित देवाने देखा डेल भय. चमर उपर शकना काप. चमरनुं भागवुं महावीरना पगमां पडवुं वज्र मूक्या टछी शक्रने थएल विचार- पश्चात्ताप वज्रनी पाछळ थएल शक्र. शक्रे महावीरथी चार आंगळ छेटे रहेल वज्रने पकडयुं शक्रनुं महावीरने वंदन अने क्षमाप्रार्थन, महावीरना प्रभावे चम ने बचाव. गौतमप्रश्न. फेंकेल पुगलनी पाछळ जइने देव तेने पकडी शके ? पुल गतिविश्वार. शक्रनी, चमरनी अने वज्रनी गमनशक्ति, तेनी परस्पर तुलना तथा तेनुं काळमान. चमरना शेक शोकना कारणना चमरना देवाना प्रश्न. चमरनी महावीर प्रति भक्ति. चमरनी स्थिति अने सिद्धि. - 2 ०७३-८४. राम मंदिरापुगात किया काविी प्रधी पारितानिकी प्राणातिपातकियाप्रमेद पैके पछी अनुभव. श्रमणाने कर्म होय ? होय. प्रमाद. योग. जीवनां एजन अने परिणमन विगेरे. जीवनी अंतक्रिया (मुक्ति). आरंभ. संरंभ. समारंभ. जीवनी अक्रियता. तृणपूलक अने अभि जलबिंदु अने अमि. नाव अने तेनां छिद्रा. अनगारनी सावधानता प्रमत्तता अने अप्रमत्ततानी स्थितिनुं प्रमाण, विहार. गौतम, लवण समुद्रमां भरती आट थवानुं शुं कारण ? लोक स्थिति, विहार. - Jain Education International शतक ३. उद्देशक २. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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