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शतक ५.-उद्देशक ८., भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. वीस य मुहुत्ता, बंभलोए पंचचत्तालीसं राइंदियाई, लंतए नउइ अवस्थान काळ अडतालीश मुहूर्त छ, गर्भज मनुष्योनो अवस्थान राइंदियाई, महासु के साह राइंदियसयं, सहसारे दो राइदिय- काळ चोवीश मुहूर्त छे; वानव्यंतर, ज्योतिषिक, सौधर्म अने ईशान सयाई, आगय-पाणयाणं संखेज्जा मासा, आरण-ऽचुयाणं संखेन्जाई देवलोकमां अवस्थान काळ अडतालीश मुहूर्त छे, सनत्कुमार देववासाई; एवं गेवेजदेवागं, विजय-जयंत-जयंत-अपराजियाणं लोकमां अढार रात्रिदिवस अने चालीश मुहूर्त अवस्थान काळ छे, असंखेजाई वाससहस्साई, सव्वट्ठसिद्धे पलिओवमस्स संखेनइ- माहेंद्र देवलोमा चोवीश रात्रिदिवस अने वीश मुहूर्त अवस्थान भागो; एवं भागिय वडति, हायंति जहण्गेणं एकं समयं, काळ छे, ब्रह्मलोकमां पीस्तालीश रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, उक्कोसेणं आवलियाए. असंखेजड्भागं, अववियाणं जं भणियं. लांतक देवलोकमां नेवु रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, महाशुक्र
देवलोकमा एकसो साठ रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, सहस्रार देवलोकमां बसो रात्रिदिवस अवस्थान काळ छे, आनत अने प्राणत देवलोकमा संख्येय मासो सुधी अवस्थान काळ छे, आरग अने अच्युत देवलोकमां संख्येय वर्षो अवस्थान काळ छे, ए प्रमाणे प्रैवेयक देवोनो, विजय, वैजयंत, जयंत अने अपराजित देवोनो असंख्य हजार वर्षों सुधी अवस्थान काळ जाणत्रो, तथा, सर्वार्थ सिद्धमा पल्योपमना संख्येय भाग सुधी अवस्थान काळ जागवो. अने एओ, जघन्ये एक समय सुधी अने उत्कृष्ट आवलिकाना असंख्य भाग सुधी वधे छे, घटे छे ए प्रमाणे कहे अने-तेओनो अवस्थान
काळ तो जे कह्यो ते जाणवो. १०. प्र०—सिद्धा णं भंते ! केवड्यं कालं वड्डति ? १०. प्र०-हे भगवन् ! सिद्धो केटला काळ सुधी
वधे छे !,
१०. उ०-गोयमा ! जहण्णेणं एक समयं, उक्कोसेणं १०. उ०-हे गौतम ! जघन्ये एक समय अने उत्कृष्टे आठ अट्ठ समया.
समय सुधी सिद्धो वधे छे. ११. प्र०-केवइयं कालं अवडिया ?
११. प्र०-(हे भगवन् !) सिद्धो केटला काळ सुधी
अवस्थित रहे छे ? ११. उ०-गोयमा ! जहणणं एक समयं, उक्कोसेणं ११. उ०-हे गौतम! जघन्ये एक समय अने उत्कृष्ट छ छम्मासा.
मास सुधी सिद्धो अवस्थित रहे छे. १२.प्र०-जीवा णं भंते ! किं सोवचया, सावचया, १२. प्र०-हे भगवन् । जीवो उपचय सहित छे, अपचय सोयचय-सावचया, निरुवचय-निरवचया ? '
सहित छे, सोपचय सापचय छे अने उपचय रहित छे के अपचय
- रहित छे ! १२. उ0--गोयमा । जीवाणो सोवचया, नो. सावचया, १२. उ०-हे गौतम! जीवो सोपचय-उपचय सहित-नथी, नो सोवचय-सायचया, निरुवचय-निरवचया; एगिंदया ततियपदे, सापचय-अपचय- सहित-नथी, सोच सापचय नथी, पण सेसा जीवा चाहिं पदोहं भाणियव्वा.
निरुपचय अने निरपचय छे. एकेन्द्रिय जीवो वीजा पदमा छे एटले
सोपचय अने सापचय छे, बाकीना जीवो चारे पदो वडे कहेवा. १३. प्र.--सिद्धाणं पुच्छा ?
१३. प्र०—(हे भगवन् ! ) सिद्धो. केवा छे ? (पूर्वनी पेठे सोपचयादिनो प्रश्न करयो.)
१. मूलच्छायाः-विंशतिश्च मुहूर्ताः, ब्रह्मलोके पञ्चचत्वारिंशद् रात्रिदिनानि. लान्तके नवती रात्रिंदिनानि, महाशुके षष्टी रात्रिंदिनशतम् , सहस्रारे द्वे र त्रिंदिनशते, आनत-प्राणतयोः संख्येया मासाः, आरणा-ऽच्युतयो. संख्येवानि वपीणि; एवं प्रैवयकदेवानाम् , विजय-वैजयन्तजयन्ता-ऽपराजितानाम् असंख्येयानि वर्षसहस्राणि, सर्वार्थसिद्ध पल्योगमस्य संख्येयभागः, एवं भणितव्य वर्धन्ते, हीयन्ते जघन्येन एक समयम् , उत्कृष्टेनाऽऽवलि काया असंख्येयभागम् , अवस्थितानां यद् भणितम् . सिद्धा भगवन् ! कियन्तं कालं वर्धन्ते । गौतम ! जघन्येन एक समयम् , उत्कृष्टेन अष्टा समयान् . कियन्तं कालम्-अवस्थिताः ? गौतम | जघन्यैन एक समयम् , उत्कृष्टेन पर मासान्. जीवा भगवन् । किं सोपचयाः, सापचयाः, सोपचय-सापचयाः, निरूपचय-निरपचयाः ? गौतम । जीवा नो पचयाः, नो सापचयाः, नो सोपचय-सापचयाः, निरुपचय-निरपचयाः, एकेन्द्रियास्तूतीयपदे, शेषा जीवाश्चतुर्भिः पदैर्भणितव्याः सिदाः पृच्छा:-अनु०
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