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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १.-उद्देशक ७.
तस्थ जायइ. अप्पं ओयं, बहु सुकं. पुरिसो तस्थ जायइ. दुहं पि रत्त- पदार्थ खाय छे. अने तेने खाइने गर्भपणे उपजे छे. त्यार बाद सात दिवसे सुकाणं तुाभावे नपुंसओ. इत्थीओयसमाओगे बिचं तत्थ जायइ.x x ते गर्भ कललरूप थाय छे. पछी बीजा सात दिवसे ते गर्म परपोटा जेबो xxx कोइ पुण पावकारी बारस सेवच्छराई उकोसं, वसइ गम्भवासे. थाय छे. पछी ते परपोटानी पेशी बने छे अने पछी ते, कठण पेशी जेवो x x x आउसो!. आणुपुब्वेणं अट्ठारसपीठकरंडगसंधीओ, बारस पंसु- थाय छे. पहेले महीने गर्भनुं वजन एक कर्ष ऊ' एक पल थाय छे. लिआकरंडे, छ पंसुलिए कडाहे, विहत्थिआ कुच्छी, चउरंगुलिआ गीवा, (सोळ मासानो एक कर्ष तथा चार कर्षनो एक पल थाय छे.) बीजे चउपलिआ जिन्भा, दुपलियाणि अच्छी णि, चउप्पलकवालं सिर, बत्तीस मासे कठण पेशी जेवो थाय छे. त्रीजे मासे माताने दोहद (डोळो) दंता, सत्तंगुलिआ जीहा, अद्भुटुपलयं हिअयं, पणवीसपलं कालिज, दो उत्पन्न करे छे. चोथे मासे मातानां अंगोने पुष्ट करे छे. पांचमे मासे ते अंता पंचवामा पण्णत्ता. तं जहा-थुलते य, तणुअंते य. तत्थ णं जे से पेशीमाथी पांच अंकुरा फूटे छे-बे पगना बे, बे हाथना बे अने माथानो थूलंते, तेणं उच्चारे परिणमइ. 'तत्थ णं जे से तणुअंते, तेणं पासवणेणं एक. छठे महीने पित्त अने शोणित उपजे छे. सातमे महीने सातसो नसो, परिणमइ. दो पासा पन्नत्ता. तं जहाः-वामपासे,दाहिणपासे तत्थ णं जे पांचसे मांसपेशीओ, मोटी नव धमणीओ-नाडीओ अने डाढी तथा से बामपासे से सुहपरिणामे, तत्थ णं जे से दाहिणपासे से दुहपरिणामे. मुछ सिवाय नवाणु लाख रोमकूपोने उपजावे छे, वळी डाढी अने मुछना आउसो। इमम्मि सरीरए सट्ठिसंधिसयं, सत्तुत्तरि मम्मसयं, तिणि मळीने साडा त्रण क्रोड रोमकूपो निपजावे छे. आठमे मासे ते पूरेपूरा अहिदामसयाई, नव नाडिआसयाई, सत्त सिरासयाई, पंच पेसीसयाई, अंगवाळो बने छे. xxx x (अहीं २४४ मा प्रश्न सूत्रथी मांडीने नव धमणीओ, नवनउई च रोमकूवसयसहस्साई विणा केस-समंसुणा, सह २५८ सुधीना प्रश्न सूत्र सुधीनो बधो अर्थ जाणवो, कारण के श्रीतंदुलकेस-समंसुणा, अछुट्टाओ रोमकूबकोडीओ. आउसो| इमम्मि सरीरए चारिक प्रकीर्णकमां (तन्दुलवेआलिय पयन्नामां) अने श्रीभगवतीसूत्रमा सटिसिरासयं नाभिप्पभवाणं उद्गामिणीणं सिर उवागयाण, जाउ रसहरणीओ आ अर्थ लगभग सरखो ज छे. माटे तेने अहीं देखाख्यो नथी. जे विशेष ति युच्चइ. जासिं णं निरुवघाएणं चक्खू-सोय-घाण-जीहाबलं च भवइ. छे ते आ छे:-२५५मा उत्तरसूत्रमा 'विभंगज्ञानलब्धिवडे' ए अने २५७ मा xxx आउसो। इमम्मि सरीरए सट्ठिसिरासयं नाभिप्पभवाणं अहोगामि. उत्तरसूत्रमा 'वक्रियलब्धिवडे' 'वीर्यलब्धिवडे' 'अवधिज्ञानलब्धिवडे' एटलं णीणं पायतलं उवागयाणं. जासिं गं निरुवघाएणं जंघावलं भवइ. श्रीतंदुलवैचारिक प्रकीर्णकमां वधारे छे अने बीजुं बधुं तो सरखा जेवू ज xxx आउसो। इमम्मि सरीरए सद्विसिरासयं नाभिप्पभवाणं तिरि- छ. तथा आगळ श्रीभगवतीसूत्रना बीजा शतकना पांचमां उद्देशकमां यगामिणीणं हत्थतलमुवागयाणं. जासिं गं निरुवघाएण बाहुबलं हवइ. पण आ संबंधे विचार आवशे, अने ते विचार त्याथी जाणी लेवो.) ते xxx आउसो! इमस्स जंतुस्स सट्ठिसिरासयं नाभिप्पभवाणं अहोगामिणीणं गर्भने फळना डिंटिया सरखी, कमळना नाळ जेवा घाटवाळी नाभि उपर गुदपविट्ठाणं. जासिं निरुवघाएणं मुत्त-पुरिस-बाउकम्मं पवत्तइ. रसहरणी नामनी नाडी होय छे अने ते नाडी मातानी नाभि साथे संबद्ध xxx आउसो। इमस्स जंतुस्स पणवीस सिराउ सिंभधारिणीउ, पणवीसं होय छे, तेथी ते वाटे गर्भनो जीव ओजने प्रहण करे छे अने ते बडे ज्यां सिराउ पित्तधारिणीउ, दस सिराउ सुकधारिणीओ, सत्त सिरासयाई पुरिस• सुधी जन्मे त्यां सुधी वृद्धि पामे छेxxxxx वळी हे दीर्घजीवि स्स. तीसूणाई इस्थिआए. वीसूणाई पंडगस्स. आउसो! इमस्स जंतुस्स शिष्य | पछी नव मास वीत्या पछी, नव मास पूरा थया पछी के नव रुहिरस्स आढगं, वसाए अद्धाढर्ग, मत्थुलुंगस्स पत्थो, मुत्तस्स आढयं, मास पूरा थया पहेला ते गर्भवती स्त्री चार जातमांना एक जातना जीवने पुरिसस्स पत्थो, पित्तस्स कुलवो, सिंभस्स कुलवो, सुकस्स अद्धकुलवो, जं प्रसवे छे-पुत्रीरूपे पुत्रीने प्रसवे छे, पुत्ररूपे पुत्रने प्रसवे छ, नपुंसकरूपे जाहे दुटुं भवइ तं ताहे अइप्पमाणं भवइ. पंचकोटे पुरिसे, छकोट्ठा नपुंसकने प्रसवे छ अने विंबरूपे विंबने प्रसवे छे. ज्यारे वीर्य ओछु होय इथिआ. नवसोए. पुरिसे, इकारससोआ इत्थिा , पंच पेसीसयाई पुरिस- अने ओज वधारे होय त्यारे धुम्री उत्पन्न थाय छे, वीर्य वधारे अने स्स, तीसूणाई इथिआए, वीसूणाई पंडगस्स.x xx x x जं ओज ओछु होय त्यारे पुत्र उत्पन्न थाय छे, ओज अने वीर्य बन्ने सरा पिंडिआसु अरु पइटिआ तद्विआ कडिपिट्ठी, कडिअट्टिवेढिआई अट्ठारस होय त्यारे नपुंसक उत्पन्न थाय छे अने ज्यारे बीना ओजनो पिट्टिअट्ठीणं. दो अच्छिअहिआई, सोलस गीवहिआ मुणेअव्वा, पिट्ठीपइ- (तुवती श्रीनो) संयोग थाय सारे मात्र कोइ पण जातना आकार विटिआउ बारस किल पंसुली हुंतिः"-श्रीतन्दुलवैचारिकप्रकीर्णक. नानो मांस पिंड (बिंब) उत्पन्न थाय छे. कोइ महापापी जीव वधारेमा
वधारे चार वरस सुधी गर्भावासमा रहे छे. वळी हे चिरंजीव शिष्य | आ देहा अनुक्रमे अढार पीठकरंडकनी संधिओ छे. चार पांसलिओनो करड छे. छ छ पासळिनो एक एक कडाह छे-एक तरफ छ पांसदिओ छ भने बीजी तरफ बीजी छ पांसलिओ छे. एक उतनी कुख छे. चार आंगळनी प्रीवा-डोक-छे. वजनमा चार पलनी जीभ छे. बे पलनी आंखो छे. चार पलना कपाळवाळु माधुं छे. बत्रीश दांतो छे. सात आंगळनी जीभ छे. साडा त्रण पल हृदय छे. पच्चीस पलनुं काळजुं छे. वळी आ शरीरमां बे अंत-अत्र(आंतरडा!) अने पांच वामो छे. ते आ रीतेः-एक स्थूल अंत अने बीजो सूक्ष्म अंत, स्थूल अंतवडे निहारनो परिणाम थाय छे अने सूक्ष्म अंतवडे मूत्रनो परिणाम थाय छे. वे पासां (पडसां) कहेला छे. ते आ प्रमाणेः-डाबुं अने जमणुं. डावू पड सुखना परिणामवाळु छे अने जमणुं पडलं दुःखना. परिणामवाळु छे. वळी हे आयुष्मन् ! आ शरीरमा एकसो साठ सांधाओ छे, एकसो सीत्योतेर मर्मस्थानो छे, त्रणसो हाडमाळाओ छे, नवसें नाडीओ छ, सातसो नसो छ, पांचसे पेशीओ छे, नव धमणीओ-मोटी नाडीओ-छे, रोमकूपोनी संख्या आगळ जणावी छे. वळी हे चिरंजीव ! आ.शरीरमा इंटीथी -नीकळेली एकसो साठ नसो छे, जे उपर ठेठ माथा सुधी पहोंचेली छे अने ते रसहरणी कहेवाय छे. ज्यां सुधी ते नसो बराबर छे त्यां सुधी आंख, कान, नाक अने जीभनुं सामर्थ्य ठीक होय छे xxx वळी नाभिथी नीकळेली बीजी एकसो साठ नसो छे. ते नीचे ठेठ पगना तळिआ सुधी पहोंचेली छे. ज्या सुधी ते नसो बराबर होय छे त्यां सुधी जांघर्नु सामर्थ्य ठीक होय छे xxx तथा नाभिथी नीकळेली बीजी पण एकसो साठ नसो छे. जे तीरछी ठेठ हाथना तळियां-हथेळी-सुधी पहोंचेली छे. ज्यां सुधी ते नसो बराबर होय छे त्यां सुधी हाथर्नु सामर्थ्य टके छे. वळी हे चिरंजीव शिष्य | डंटीथी एकसोने साठ नसो नीकळी छे भने ते ठेठ गुदा सुधी नीचे गएली छे. ज्यां सुधी ते नसो बराबर छे त्या सुधी मूत्र अने निहार संबंधी वायु ठीक रीते प्रवर्ते छे. वळी हे चिरंजीव । पच्चीश नसो श्लेष्मने धरनारी छे, पञ्चीश नसो पित्तने अने दस नसो वीर्यने धरनारी छे-पुरुषने कुल सातसो नाडीओ होय छे. स्त्रीने छसेंने सीतेर तथा नपुंसकने छसेंने एंशी नाडीओ होय छे. वळी हे चिरंजीव शिष्य | आ शरीरमा एक आढक (आठ शेर) रुधिर होय. छे, चार शेर चरबी होय छे, ये शेर भेजें होय छे, आठ शेर मूत्र होय छे, बे शेर विष्ठा होय छे, अडधो शेर पित्त होय छे, अडधो शेर श्लेष्म होय छे, पा शेर वीर्य होय छे; ए बधी धातुओमा ज्यारे विकार थाय छे त्यारे तेनुं वजन वधे या घटे छे. पुरुषने पांच कोठा होय छे. अने स्त्रीने छ कोठा होय छे. पुरुषने मल नीकळवाना नव द्वार अने स्त्रीने अग्यार द्वार होय छे. पुरुषने पांचसे, स्त्रीने चारसैने सीत्तर तथा नपुंसकने चारसेंने एंशी मांसपेशी होय छे.xxxxx मांसना पिंडो उपर साथळ रहेला छे अने ते उपर ज कडनो पाछळनो भाग रहेलो छे. पीठना अढार हाडकांओ कडना हाडकांथी विंटाएला छे. आंखनो बे हाडको छे. गरदनना सोळ हाडकां छे भने पीठमा बार पासळीओ छ:"-श्रीतंदुलवैचारिक प्रकीर्णक ( तंदुलवेआलिअ पयन्ना):-अनु.
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