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६२.
तिरंगलोय
अम्हे वि पडिदारम्मि रंग-पदेशो कओ अणण्णमओ । भवण-कय-कण्णपूरो केऊरो रायमग्गस्स ॥ ४८७ तस्सेव एक्क-पासम्मि उद्धिओ वेइआ-परिक्खित्तो । कंबल-रयण-वियाणो सो मञ्झं पट्टओ घरिणि ॥ ४८८ तत्थ उवयार-कारी विस्सास-निही सिणेह-भायणं मे । पिययम-मग्गण-पणिही चित्त-पदे चेडिया ठविया ॥ ४८९ महुर-पडिपुण्ण-पत्थुय-साइसया रसिय-वयण-भावण्णू ।' घरिणी सारसिया सा भणिया य मए इमं वयणं ॥ ४९०
आयारिंगिय-भावेहिं जाणसि तं परस्स हियय-गयं । मह जीवियव्वयत्थं हिययत्थं ते इमं होउ ।। ४९१ जइ होही आयाओ पिओ महं सो इहं पुरवरीए । दळूण तो पडमिणं सरिही पोराणियं जाई॥ ४९२ जं जीए सह पियाए जत्थणुभूयं सुहं च दुक्खं च । तं तीए विप्पओगे दह्णुकंठिओ होइ ॥ ४९३ सूएइ अच्छि-रागो ज पिययममप्पियं च लोयम्मि । पुरिसस्स अणु-निव्वरियं हिययाकूयं निगूढं पि ॥ ४९४ रुहस्स खरा दिट्ठी निम्मल-धवला पसण्ण-चित्तस्स । विलियस्स(?) य सनियत्ता मज्झत्था वीयरायस्स ॥ ४९५ पर-बसण-दरिसणेण वि साणुकोसो जणा हवइ दीणो । अणुभूय-पच्चक्खो (?) विहट्टिओ भोग-सल्लेण ॥ ४९६ इणमो लोए वि सूई पोराणिं संभरेत्तु किर जाई । x x x x मुच्छ सुठु वि जो दारुणो होइ । ४९७ सो पुण सभाव-वच्छल-मिउ-हियओ अप्पणो अणुभवित्ता। पडिभाविय-दुक्खो ददठूण इमं गच्छिहिइ मुच्छे ॥ ४९८ आवडिय-सोग-हियओ किलिण्ण-नयणो य होहिई सज्जो । तत्ताणुगमण-तुरिओ पुच्छिहिइ इमस्स कत्तारं ॥ ४९९ पर-लोय-विप्पभ₹ इय दळूणं महं हियय-नाहं । जाणाहि चक्कवायं तं माणुस-जाइमायायं ॥ ५०० तं नामेण वि गुण-वण्ण-रूव-वेसेहिं सु-प्परिण्णायं । काऊण मज्झ. कल्लं साहसु जइ तो अहं जीयं ॥ ५०१ होही मे तेण समं वयंसि तो हियय-सोग-निट्ठवणो । सुरय-रइ-संपओगो आसंगो काम-भोगाणं ॥ ५०२ जइ न विहत्थिहिसि सही तं नाहं मज्झ मंद-पुण्णाए । जिण-सत्थवाह-पहयं तो मोक्ख-पहं गहिस्सामि ।। ५०३
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