________________
६०
Jain Education International
बर- भवण- पडिहार - ट्टिया य कणयमय भरिय - भिंगारा । घोसंति दाण-वइणं वर - वरियं दाण-कय-सद्धं ॥ ४७० कण-कण्णा-गो-लक्ख-दूस - भूमी - किमिच्छंग-पयाणो । सयगासण जाणाणि य असणाणि जणो तर्हि देह ||४७१ ताओ अम्माए समं चेइय सकारगं करेइ पुगो । विवि-गुग-जोग - जुत्तेसु देइ साहूसु दाणाई ||४७२ नत्र - कोडी परिसुद्धं उग्गम-दोसेहिं दसहिं विविमुक्कं । उपाय-दोसेहिं च सोलह विविवज्जियं ॥ ४७३ तं वत्थ पाग-भोयग-सयगासग लेग-भायगादोयं ।
देमो अयं दागं उग्गह-करं सु-विहियाणं ||४७४ जिगर घरेसु य पुगा नागा सकियरयग-रुपाणं । कुना (?) परस लोयत्स महक घरिणि ॥४७५ दिग्रस नत्थि नासो दाणस्स सुभासुभस्स सव्वत्थ । होइ सुभे पुत्र पुण्गं होइ अनुगं च अनुमम् ||४७६ त्रिविह-गुग-जोग - जुते विउ-तत्र संजतेग जुते सु । दिगं फायदा सद्धा सकार- विगए हिं ॥४७७ तं सेयं विउल - फलं पसइ तत्तो निरामयं च पुणो । सुकुलम्म समुप्पति माणुस भत्र सोमणि कुगइ ॥ ४७८ एएण कारणं देमो तत्र-नियम- दंसग धराणं । पत्तम्मि हवइ उ पत्त- दाणं संसार - मोक्ख-करं ||४७९ रायावगारितकर-वितह वयग - कारि-पार-दारीसु I होइ पुग अफ फायदा पिजं किंचि ॥४८० अकंपाए निमित्तं बहुयाणं तत्युत्थियागं तो । महविग-संयाग दिग्गा [३] दागाई ॥४८१ दुरणुचर- नियम- बहुलो विकिट्ट खवणोववास दाण-रुई । अइरेग धम्म-सी हो कोमुइ दिवसे जगो आसी ||४८२
*
एव य पेच्छामि अहं नाणांवत्यंतरे पुरवरीए । संखित्त - रस्सि - जालो सूरो य समोत्थरइ अत्थं ॥४८३ पुव्व- दिसा - पिय- कामिणि- परिभोग-किलंत - पंडुर-च्छाओ । अवर - दिसा - विलयाए निवडइ वच्छ-त्थले सूरो ॥४८४ नइयल - हिंडण संतो निम्मल - तवणिज्ज-रज्जु-भूयाहिं । ओयरइ व भूमि-तलं सूरो निययाहिं रस्सीहि ||४८५ सूरम्मि य अस्थमिए तिमिर-कलंकिज्जमाण - सामाए । पडिवण्णो जिय-लोओ सव्वो वि य साम-भावेण ॥४८६
For Private & Personal Use Only
तरंगलोला
www.jainelibrary.org