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तरंगलाला
सव्वस्स एइ मच्चू तूरह पियमप्पणो लहुं काउं । पुण्ण-मणोरह-तुट्ठस्स होइ मरणं पि किर सहलं ॥१०२२ न विसाओ कायव्वो सुठु वि वसण-विमुहेण पुरिसेण । हंदि चइऊण पुणो खणेण पच्चामलइ(?) लच्छी ।।१०२३ विसम-दसमस्सिएण वि पुरिसेण विवण्ण-पुरिसकारेण । दुक्खं पि य विसहेउं पियाए समयं सुहं होइ ॥१०२४
एवं सोऊण पिओ घरिणी गीयत्थ-चोइओ इणमो । भाणइ(?) य पीणसोणी सुण ताव वि पिए इमं वयणं ।।१०२५ पुलव-कय कम्म-निब्बत्तियस्म केते निगूढ मंतस्स । कसण-मिर-दीह-केस(?) न पलाइउं सक्का ।।१०२६ किं वज्जे तो(?) वि पिए अवसो पावइ वसं कयंतस्स । नहु उज्जयं निवारेइ कोइ पहरेसु ल्हिक्कंतो ।।१०२७ नक्वत्त-चंद गह-नायगस्स जइ ताव अमयगब्भस्स । चंदस्स एइ वसणं न(?) सोगो पायय-जणम्मि ॥१०२८ अप्प-कय-कम्म-विवाग(?)-खेत्त-दव्य गुण-काल-संजुत्तो । सुह-दुक्खस्स बिवागो नवरि निमित्तं परो होइ ।।१०२९ तं मा होहि विसण्णा सुंदरि सव्वेण जीव-लोयम्मि । सुह-दुक्ख-विसेस-करं न विहाणं लंघिउं सक्का ॥१०३०
तो तत्थ अहं घरिणी पियस्स सण्णवण-वयण-गहियत्था । पिय-वयण-समासाइय-मउइय-सोया पुणो जाया ॥१०३१ अच्छामि रुण्ण-पिंडिय-बंदी-जण(?)-विमण-मण-विरुद्धा । बद्धा पयया मुद्धा पइणा समय मिगी चेय ॥१०३२ काउं य तत्थ मज्झं कलुण-विलावाणियंसुवेगाओ । संभरिय-नियय पक्खा . चिरं पि रोयंति बंदोओ ॥१०३३ काओ सभाव-वच्छल-मउइय-हियया वसण-समुदयं अम्ह । दठूण परुण्णाओ अणुकंपा-कांपेयंगीओ ॥१०३४
ओरण-लोयणाओ बंदीउ भणंति पच्छियं(?) कत्तो । किह वेत्थ अणत्थ-घरं तकर-हत्थं इमं पत्ता ॥१०३५
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