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________________ क्षमामूर्ति गजसुकुमाल १ पिता वासुदेवजी, माता देवकीजी, भाई कृष्णजी और कइ सामन्तराजा आदि परिवार नेहकी नजरसे गजसकमालजी इन्तजारी करते हुए बैठे है । इतने में सैरसे लौटते हुए उन्हे देखकर सब हर्षित होते है । कितना सन्मान ? कितना भव ? हैं कही मौतिक मुशिबतो का नामो निशान भी । २ गजसकुमालजीकी सगाइ हो चुकी है। फिर भी भगवान श्री नेमिनाथ के उपदेश से वैगगी बनकर दीक्षा लेते है । कितना जबरदस्त त्याग ? ३ दीक्षा के बाद नेमिनाथ प्रभुकी आज्ञा लेकर स्मशान में ध्यानस्थ रहते हैं। गजसुकुमाल का श्वसुर सोमिल क्रोधित हो दामाद के सिर पर मिट्टी की पाली बनाकर उस में जलते हुए अंगारा रखते है मुनि "समता से जो मेरा है सो जलता नहीं और जो जलता है वह मेरा नही” एसा सोचकर स्थिर रहे, ताकि अंगार नीचे गिरने से कहीं क्सिी जन्तु का नाश न हो । सकल कर्मो का क्षय कर मुक्त हुए । ४ प्रातःकाल कृष्णजी, भगवान के पास भाई को न देख, पूछते हैं । भाई कहाँ है भगवान ने कहा लौटने वक्त तुम्हे जो द्वार पर मिलेगा। उसकी सहायसे गजसुकुमाल ने मोक्ष पाया है ।। कृष्णजी मुनिघातक को शिक्षा करने के लिए फौरन लोटते है । ५ नगर के दरवाजे मे ही कृष्णणी को आये देख सोमिल को हृदयगति रुकने से मृत्यु हुइ । घन्य गजसुकुमाल Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004615
Book TitlePrachin Sazzaya Mahodadhi Sachitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShah Indrachand Dhanraj Dhoka Adoni AP
PublisherShah Indrachandji Dhanrajji Dhokaji Adoni AP
Publication Year
Total Pages442
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size23 MB
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