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________________ नल दमयंती (मुनीपीडा) १. पूर्वभव मे दमयंतीने राजा के साथ शिकार को जाते समय साधु को नौकरों द्वारा पकडया कर दुःख दिया । २. बारह घडी बाद तीब्र पश्चाताप हुआ, क्षमा मांगी घर लाकर भक्ति की । ३. जिनप्रतिमाओ को रत्नतिलक लगाने से दमयंति के भवमें जन्म से ही ललाटमें प्रकाशमान कुदरती तिलक हुआ । ४. स्वर्ग के बाद दोनेा ग्वाल वने, वरसात से रुके हुये मुनि पर छाता पकडा । ५. बाद दोंने ने दूध बेहराश, दोनेा दीक्षित बने । ६. निद्रावश दमयंती को जंगल मे छोड चला गया । ७. गुफा में शान्तिनाथ भगवान की दमयंती द्वारा तपपूर्वक पूजा भक्ति । ८. देव बने हुये नल के पिताने सर्प बनकर उसे काटा, नलका रुप पलट गया । पूर्वरुप बनाने वस्त्र-श्रीफल और अलंकार डब्बी दी। ९. दघिपर्ण के साध नल दमयंती के स्वयंबर मे ।। १०. सूर्यपाक रसोई से दमयंती को नल की पहचान । ११. नल का पूर्वरुप होना, मीमरथ में नल को राज दे दिया, जुएं में कुबेर को जीतकर हारा हुआ अपना भी राज ले लिया । नल दमयंती ने दिक्षा ली स्वर्ग गये । -धन्य सती दमयंती Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004614
Book TitlePrachin Sazzaya Mahodadhi Sachitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShah Indrachand Dhanraj Dhoka Adoni AP
PublisherShah Indrachandji Dhanrajji Dhokaji Adoni AP
Publication Year
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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