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________________ गौतम स्वामि विलाप गौतमस्वामि चरमशासनपति महावीर देव के प्रथम शिष्य थे। साथ साथ परमात्मा प्रति अवीहड भक्ति राग था निर्मल ज्ञानसे परमात्मा मोक्ष समय नजदीक हुझे देखकर ___ गौतमस्वामि को देवशर्मा को प्रतिबोध के लिये भेजे । २. ईधर परमात्माने अपापापूरिमे हस्तिपालराजाकी सभामे नवमल्ली और नवलच्छि देश असे अठारह देश के राजन् निर्जल छठ तपके साथ पौषध लेके १६ प्रहरकी देशना सुणने कु बैठे, ६४ इन्द कराडो देवात्माओ आदि १२ पर्षदा के सामने अखंडाधार देशना दीये, और दिपावलि के दिन निर्वाण पाया । ३. गौतमस्वामि यह खेदप्रद समाचार वापिस लौटते समय रास्ते मे. देवोका आवागमन, शोकातुरता, आंसुपरिपूर्ण नयन देखते ही मालुमात हो चुकी । तब हा...? वीर बोलते ही गिर पडे एसा ब्रजाघात समाचार आकुल व्याकुल हो गये, बेशुध्दी दशामे से जब ऊठे तब हे वीर...हे वीर..चिल्लाता हुआ | विलाप करने लगे ... ... और अत्यंत रुदन करता हुआ बोल रहा है । हा...हा...वीर तेशु कीधु । वह ऊनका विलापकी साहशतम् प्रतिकृति से विशेष ज्ञात होगा. || Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004614
Book TitlePrachin Sazzaya Mahodadhi Sachitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShah Indrachand Dhanraj Dhoka Adoni AP
PublisherShah Indrachandji Dhanrajji Dhokaji Adoni AP
Publication Year
Total Pages588
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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