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द्रौपदीजी १. पूर्वभव में द्रौपदी मुनि को कडवे जडरी तू बेका शाग बहेराया। २. परठवनेमें जीव-हिंसा देख मुनिने खा लिया, स्वर्ग गये । ३. मुनि हत्यासे नरकादि भव भ्रमण । बाद अंगार जैसा शरीर होने
से दो पतिओने छोड दिया । ४. दीक्षा, कडी धूप में आतापना, पांचयारों से सेवा की जाती वेश्या
_को देख पांच पतिका नियाणा । ५. वरमाला द्रौपदीने डाली अर्जुन गले में दिखी पांचोंके । नारदजी
से नियाणे की स्पष्टता । ६. जल मानकर धोती उ'ची पकडनें से पांडवों द्वारा दुर्योधन का
उपहास । ७. जुए में पांडव राज्य और द्रौपदी तक हारे, दुर्योधन की जीत । ८. सभा द्रौपदी वस्त्रहरण । ९. कीचक वध । १०. युद्धभूमि पर घायल भीष्म को देव के द्वारा दीक्षा समय की सूचना । ११. अविरति होने से नारदजी को द्रौपदी से अबहुमान । १२. ईस लिये नारदजीने द्रौपदी का अमरकंकामे हरण करवाया। १३. नौका न भेजने से कृष्णजी का पांडबो पर तीव्र रोष, देशनिकाले
का हुकम । १४. कुती, द्रौपदी सहित पांडवों की दीक्षा । १५. ऊय तपसे द्रौपदी स्वर्ग में और बाकी सिद्धाचलजी पर मुक्त ।
-धन्य सती द्रौपदी
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