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भावी १२ वें तीर्थंकर श्री कृष्णजी १. पूर्व जन्म में सर्प घातक कृष्णजी । २. दूसरे भव मे सर्पिणीका जीव माता बनकर (पुत्र कृष्ण के जीव) गंगदत्त
को गट्टरमे पटकना । ३. गंगदत्त की दिक्षा सब का प्रेमपात्र बनने का नियाणा स्वर्ग । ४. बाद देवकीके सातमें गर्भ कृष्णजी । ५. पुर्वी केतुमंजरी को दासी या महारानी बनने का पूछना, दासीपना
माँगने से जुलाहे के साथ विवाह घरकाम न करने से मार. पितासे
शिकायत दिक्षा । ६. शराब के नशे में शांव आदि से द्विपायन को मार । द्वीपायन. नियाणा
कर अग्निकुमार देव बने, द्वारका को जला दी। ७. अपना यह राज लो और मेरी आज्ञा मैं रहो “कहनेवाले भरतजी से
लडेंगे" यह कहने आये हुए ९८ पुत्रोंको ऋषभ भग. का कवायत्याग
पूर्वक संपूर्ण अहिंसा का उपदेश । और दिक्षा । ८. भगवद्गीता के श्री कृष्णका अर्जुनको अपने भाइ कौरव गुरु मित्रादिके
साथ क्षत्रियधर्म-पालनरुप कषायसहित युद्ध (घोरहिंसा) करनेका उपदेश
न करने से स्वधर्मभ्रंश अपकिर्ति और पाप इत्यादि होने का भयंकर इशारा। ९. जलती द्वारका । १०. बलदेवजी की अनुपस्थितिमैं मृग जानकर छोडे हुए जशकुमार के
बाण से कृष्णजी की मृत्यु । ११. बलराम मुनि संयम-तपसे बढई आहार दानके अति भावोल्लास से और
हरिण यह सब देख अनुमोदना करते अधकटा पेड गिरने से तीनोकी मृत्यु और स्वर्ग प्राप्ति ।
-नमन हो भावि अगमस्वामिनाथ को
(श्री कृष्णजी के जीव)
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