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प्रवयन : 9
॥ श्री ज्ञान पद वन्दना ॥ ७
सव्वन्नु पणीयागम
जो सुद्धो अवबोहो,
भणियाण जहठ्ठियाण तत्ताणं ।
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तं सन्नाणं मह पमाणं ॥ १ ॥
जेण भक्खा भक्खं
पिज्जा पिज्जं अगम्ममवि गम्मं । किच्चा किच्चं नज्जइ
तं सन्नाणं मह पमाणं ॥ २ ॥
सयल किरियाण मूलं
जं किर हवेइ मूलं
सद्धा लो अंमि तीइ सद्धाए ।
सन्नाणं मह पमाणं ॥ ३ ॥
- सिरिसिरिवालकहा ।
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