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प्रवयन:८
॥ श्री चारित्र पद वन्दना ॥८
जं देसविरइ रुवं
सव्वविरइ रुवं च अणुकमसो। होइ गिहीण जईणं
तं चारित्तं जए जयइ ॥१॥
नाणंपिदंसणंपि अ,
___ संपुण्णफलं फलंति जीवाणं । जेणं चिय परिअरिया
___ तं चारित्तं जए जयइ॥२॥
जंच जइण जहुत्तर -
___- फलं सुसामाइयाइ पंचविहं । सुपसिद्धं जिणसमये
तं चारित्तं जए जयइ॥३॥
- सिरिसिरिवालकहा ।
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