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________________ एवं बंध होता है इस प्रकार की निर्जरा को सविपाक निर्जरा - अकाम निर्जरा कहते हैं (जैसे बीज योग्य भूमिमें गिरनेके बाद वृक्षरूपमें परिणमन करता है उसी प्रकार यह निर्जरा नये कर्मोंको जन्म देने के लिए कारण बन जाती है) इसी तरह सत्यप्रताति, सद्ज्ञान, सदाचरणके माध्यमसे जो कर्म आत्मासे पृथक् होता है उसको अविपाक निर्जरा, सकाम निर्जरा कहते हैं। यह निर्जरा परंपरा से मोक्ष तत्व के लिए कारणभूत है। आध्यात्मिक जागरण के बाद कुछ विशेष पापकर्म का आना रुक जाता है, - ये संवर है। संवरपूर्वक निर्जरा ही यथार्थ से उपोदय है, इसीलिए संवर एवं निर्जरा मोक्षतत्वके लिए कारणभूत है। जब संपूर्ण आध्यात्मिक जागरण की पूर्णता होती है, तब संपूर्ण कर्म आत्मासे पृथक हो जाते हैं, गल जाते हैं, खिर जाते हैं तब उसको मोक्षतत्व कहते हैं। जीवकी स्वाभाविक गति उर्ध्वगमन करनेकी है। पुद्गल Matter को स्वाभाविक गति नीचे की ओर है। कारण जीव अमूर्तिक याने (स्पर्श, गंध, रस, वर्ण, वजन से रहित एवं स्थानान्तरित रुप गति क्रिया; शक्ति से युक्त होने के कारण जीवको गति उर्ध्वगमन करने की है। उदा. हाइड्रोजन गेससे भरे हुए बलुनको छोडने से हमेशां उपर हो जाएगा। कारण हाइड्रोजन साधारण हवासे १४.५ गुणा हल्की होती है। यदि हाइड्रोजन हवासे १४.५ गुणा हल्की होनेसे उसका बलुन उपर ही उडता है तब शुद्ध जीवतो पूर्णतः वजन (भार) शून्य है इसीलिए शुद्ध जीवका उपर गमन करना स्वाभाविक है। पुद्गल में स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, भार आदि के साथ स्थानान्तरित गति शक्ति युक्त होनेसे पुद्गल हमेशा नीचे गति करता है। अभी जीवकी स्वाभाविक गति उर्ध्वगमन करनेकी है। पर संसारी जीवकी विभिन्न गीत जैसेकि अधःगति, तिर्यकगति, उर्ध्वगति होनी है उसका कारण कर्मजनित है। संपूर्ण कर्मसे रहित जीवकी केवल एकही स्वाभाविक उर्ध्वगति होती है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटनका गति सिद्धांत विषयकमें पहला सिद्धांत हैं। इसी सिद्धान्त के अनुसार कोई भी द्रव्य यदि कोई एक दिशा की ओर गति करता है तो वह द्रव्य उस दिशामें अनंतकाल तक अविराम अपरिवर्तित गतिसे गति करता रहेगा, जब तक कोई विरोधां शक्ति या द्रव्य उस गतिका જ્ઞાનધારા (२६८ જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨) Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
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