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पीनियल व पीच्युटरी ग्रंथि ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म के उदय व क्षयोपशम का संभावित क्षेत्र हो सकती है। थायराइड का संबंध नाम कर्म से स्थापित हो सकता है। गोनाड व एड्रीनल ग्रंथि मोह कर्म की प्रकृतियों के उदय से काफी साम्य रखती है ।
यद्यपि ग्रंथियों व उनके स्त्रावों का, कर्म के कार्यों के साथ साम्य जोडा गया है फिर भी यह स्वीकार करना ही होगा कि ग्रंथियों के स्त्राव कर्म की अपेक्षा स्थूल है। कर्म चतुस्पर्शी पुद्गल है, जबकि ग्रंथियों के स्त्राव अष्टस्पर्शी हैं । सूक्ष्मतम कर्म पुद्गल आज तक निर्मित उपकरणों से भी अदृश्य हैं। सूक्ष्मतम कर्म परमाणु सर्वस, केवली द्वारा ही दृश्य हैं।
निष्कर्ष
कर्मवाद का सिद्धांत प्रकाशस्तंभ है। कर्मवाद निराशा पैदा करने वाला सिद्धांत नहीं, अपितु पुरुषार्थ को उजागर करने वाला है। कर्मवाद की सामाजिक, व्यावहारिक, आध्यात्मिक दृष्टि से उपयोगिता निर्विवाद है। आदमी भाग्य के भरोसे बैठे रहता है, पुरुषार्थ पर भरोसा नहीं करता । अपने पुरुषार्थ पर भरोसा ही फलदायी बनता है ।
यद्यपि कर्म अदभुत शक्तिशाली सत्ता है पर जब आत्मा को अपनी अनंत शक्ति का भान हो जाता है तब वह भेदविज्ञान, प्रेक्षाध्यान का महान अस्त्र हाथ में उठाकर तप संयम में प्रबल पुरुषार्थ करता है और कर्म की शक्ति को निरस्त कर परमात्मा, परमेश्वर बन जाता है। सच्चिदानंदमय स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।
જ્ઞાનધારા
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જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨
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