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________________ यही वैयक्तिक जीवन की विषमतायें सामाजिक जीवनमें वर्ग - विद्वेष, शोषकवृत्ति और धार्मिक एवं राजनैतिक मतान्धता को जन्म देती है । और परिणामस्वरूप हिंसा, युद्ध और वर्ग संघर्ष होते रहते है। इन विषमताओं के कारण उद्भूत संघर्षो को हम चार विभागसे विभाजित कर सकते हैं । (१) व्यक्तिका आंतरिक संघर्ष : जो आदर्श और वासना के मध्य है, यह इच्छाओं का संघर्ष है। इसे चैतसिक विषमता कहा जाता है । (२) व्यक्ति और वातावरण का संघर्ष : व्यक्ति अपनी शारीरिक आवश्यकताओं और अन्य इच्छाओं की पूर्ति बाह्य जगत में करता है। अनन्त इच्छा और पूर्ति के सीमित साधन इस संघर्ष को जन्म देते है । यह आर्थिक संघर्ष अथवा मनोभौतिक संघर्ष है। (३) व्यक्ति और समाज का संघर्ष : व्यक्ति अपने अहंकार की तृष्टि समाज में ही करता है। उस अहंकार को पोषण देने के लिये अनेक मिथ्या विश्वासों का समाजमें सृजन करता है। यही वैचारिक संघर्ष का जन्म होता है। ऊँच-नीचका भाव, धार्मिक मतान्धता और विभिन्न वाद उसके परिणाम हैं। (४) समाज और समाज का संघर्ष : जब व्यक्ति सामान्य हितों और सामान्य विश्वासों के आधार पर समूह या जूथ बनाता है तो सामाजिक संघर्षों का उदय होता है । इसका आधार आर्थिक और वैचारिक दोनों ही हो सकता है। ये विषमतायें दूर करने के लिये हमें राग-द्वेषादि कषायाको भी क्षीण करना होगा। इस कषायों के ही कारण व्यक्ति और समष्टि का जीवन अशांतिमय बनता है । जैसे इसके साथ मनुष्य के मनमें रहे हुए ममत्व, ईर्ष्या, क्रोध आदि कषायो, तृष्णा-मोह आदि भी सब अनिष्टोंके मूल में है । विषय भोगकी वासना सारे संघर्ष की जननी हैं। सामाजिक जीवन में व्यक्ति का अहंकार भी निजी लेकिन महत्त्वका स्थान रखता है। शासन की इच्छा या आधिपत्य की भावना इसके केन्द्रिय જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨ જ્ઞાનધારા Jain Education International ૨૩૭ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
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