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________________ 28 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् प्रथम दशा इसके अतिरिक्त भोजन का समय भी नियत होना चाहिये / भोजन का समय और प्रमाण नियत होने से ही समाधि-स्थान की प्राप्ति हो सकती है / एसणाऽसमिते आवि भवई / / 20 / / एषणाऽसमितश्चापि भवति / / 20 / / पदार्थान्वयः-एसणाऽसमिते-एषणा-समिति के विरुद्ध, आवि भवइ-जो होता (चलता) मूलार्थ-एषणा-समिति के विरुद्ध चलने वाला / . टीका-एषणा-समिति का अर्थ है कि जितने भी साधु के ग्रहण करने योग्य पदार्थ हैं उन सब को गवेषणा या एषणा द्वारा शुद्ध करके ही ग्रहण करना चाहिए / अग्राह्य पदार्थों को कभी न लेना चाहिए / एषणा–समिति के उपयोग के ज्ञान बिना, अविचार से पदार्थों को ग्रहण करने वाला असमाधि-स्थानों की वृद्धि करता है / तथा एषणा-समिति का पूर्ण ध्यान न रखने से अनुकम्पा (दया) के भावों में भी न्यूनता आ जाती है, क्योंकि जो कोई बिना किसी साधु-विचार के (अर्थात् केवल आहार के ही विचार से) भिक्षा करने जाता है उस का भाव केवल ग्रहण करने का ही होता है, वह यह नहीं देखता कि अमुक वस्तु सदोष है या निर्दोष, हिंसावृत्ति से उत्पन्न की गई है या अहिंसा-वृत्ति से | बिना एषणा के पदार्थ ग्रहण करने से छः प्रकार के जीवों पर अनुकम्पा का भाव उठ जाता है / यदि कोई साधु उसे (बिना एषणा के पदार्थ ग्रहण करने वाले को) बिना एषणा के पदार्थ ग्रहण करने से रोके और वह उससे कलह कर बैठे तो अवश्य ही आत्म-विराधना और संयम-विराधना होगी / निष्कर्ष यह निकला कि समाधि-इच्छुक व्यक्ति को बिना एषणा के कोई भी पदार्थ ग्रहण न करना चाहिए / यहां तक समाधि के प्रतिबन्धकों का ही वर्णन किया गया है / समाधि-स्थानों का वर्णन आगे किया जाएगा / 'समवायाङ्ग' सूत्र के बीसवें समवाय में भी बीस असमाधि-स्थानों का वर्णन किया गया है किन्तु ध्यान रहे कि इस अध्याय और उक्त बीसवें समवाय में वर्णन किए हुए असमाधि-स्थानों में भेद अवश्य है | उदाहरणार्थ “समवायाङ्ग सूत्र” में “संजलणे।।६।। कोहणे / / 6 / / " यह दोनों, 8 वां और 6 वां, दो स्थान वर्णन किए गये हैं किन्तु
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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