________________ - र प्रथम दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / उनके मुख से निकले हुए वाक्यों को आप्त-वाक्य कहते हैं / उन वाक्यों को ही गणधरों' ने सूत्र रूप में निर्माण किया है / इसलिए इन सूत्रों को आप्त-प्रणीत (रचित) कहते हैं / दशपूर्वधारीसे लेकर चतुर्दशपूर्वधारी तक के उपयोगपूर्वक कहे हुए वाक्य भी आप्त-वाक्य है; क्योंकि गणधरों की सूत्ररचना को भी भगवान् ने संशययुक्त नहीं बताया; अपितु आत्माग़म, अनन्तरागम और परम्परागम' यह तीन प्रकार का लोकोत्तर आगम भी प्रतिपादन किया है / श्री भगवान् के अर्थ आत्मागम, गणधरों के अर्थ अनन्तरागम और सूत्र आत्मागम होते हैं, किन्तु गणधरों के शिष्यों के सूत्र अनन्तरागम और अर्थ परम्परागम होते हैं / तत्पश्चात् सूत्र तथा अर्थ दोनो परम्परागम होते हैं / उपरोक्त सारे विवेचन से यह सिद्ध हुआ कि सूत्र और अर्थ दोनों आप्त-वाक्य हैं और आप्त-वाक्य ही पदार्थों के निर्णय में सामर्थ्य रखते हैं / ___ यहां पर प्रश्न यह उपस्थित हो सकता है कि अमुक व्यक्ति सर्वज्ञ था या सर्वज्ञ है इस में क्या प्रमाण है ? उत्तर यह है कि किसी व्यक्ति की सर्वज्ञता का निश्चय उसके प्रतिपादन किये हुए वाक्यों से हो सकता है / यदि किसी के कथन में परस्पर विरोध न हो तो जान लेना चाहिए कि वह सर्वज्ञ है और यदि किसी के कथन में हमें परस्पर विरोध प्रतीत होता है तो निःसन्देह मानना पड़ता है कि उसका प्रतिपादन करने वाला कोई रागी, द्वेषी और अल्पज्ञ है / इसी प्रकार जब कहीं पर पदार्थों का यथार्थ-स्वरूप-वर्णन नहीं मिलता तो निश्चितया मानना पड़ता है कि उसका प्रतिपादक कोई अयथार्थ साधरण व्यक्ति है / इसके अतिरिक्त अनुमान प्रमाण से भी हम किसी की सर्वज्ञता का ज्ञान कर सकते हैं / जैसे 'पर्वतो वन्हिमान् धूमत्वात्' इस अनुमान में किसी व्यक्ति ने कहा 'पर्वतो वन्हिमान्’ (पर्वत में अग्नि है) / दूसरे नू पूछा 'कस्मात्' (तूमने क्यों कर जाना ?) / पहले ने उत्तर दिया 'धूमत्वात्' (क्योंकि वहां धूम है) / जब कोई व्यक्ति धूम देखकर पक्ष (पर्वत) 1 तीर्थकर का मुख्य शिष्य / 2 जिन्होंने दश पूर्व की विद्या अध्ययन की है / 3 स्वतःप्रमाण / 4 अनुन्तर (पश्चात) आगम (प्रमाण), आत्मागम का अनुयायी द्वितीयागम / 5 परम्परा से प्रमाण / 6 प्रमाण |