________________ णमोऽत्थु णं समणस्स भगवतो महावीरस्स प्रथम दशा सुयं मे, आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं / श्रुतं मया, आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम् / पदार्थान्वयः-आउर्स-हे आयुष्मन् शिष्य !, मे-मैंने, सुयं-सुना है, तेणं-उस, भगवया-भगवान् ने, एवं-इस प्रकार, अक्खायं-प्रतिपादन किया है। मूलार्थ-हे आयुष्मन् शिष्य ! मैने सुना है, उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है (कहा है) / टीका-इस सूत्र में तीन [आप्त-वाक्य', कोमल-आमन्त्रण (सम्बोधन) और अपौरुषेय-वाक्य'] विषयों का स्पष्ट वर्णन किया गया है / आप्त वाक्यों का समुदाय 'शास्त्र' कहलाता है / वह (शास्त्र) पौरुषेय है, अपौरुषेय नहीं / कोमल आमन्त्रण चित्त-प्रासादक माना गया है, इसलिए श्रीसुधर्माचार्य श्रीजम्बूस्वामी को 'आउसं' इस कोमल-आमन्त्रण से सम्बोधित कर कहते हैं: .. “हे जम्बू ! (मेरे चिरजीवी शिष्य !) मैंने सुना है उस (सर्वज्ञ) भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है / 1 यथार्थवक्ता पुरुषों के वचन / 2 ईश्वर-रचित / 3 पुरुष-रचित /