________________ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् अप्पडिपूयए अप्रतिपूजक अर्थात् गुरु की सेवा न करने वाला अप्पडिविरया जीव-हिंसा या पाप अनिवृत्त अर्थात् उस में लगे हुए अप्पणिज्जियाओ=अपनी ही अप्पणो अपनी अप्प-तरो=अल्पकाल पर्यन्त अप्प-तुमंतुमा परस्पर 'तू-तू' शब्द न करना अप्पत्तिय बहुले बहुत द्वेष वाला अप्पमत्ता=अप्रमत्त अर्थात् प्रमाद-रहित अप्प-सद्दा=विपरीत शब्द न करना अप्पाणं अपने आत्मा की अप्पाहारस्स-थोड़ा खाने वाले अप्फालेइ थपथपाता है अबंभयारी जो ब्रह्मचारी नहीं है अबहुस्सुए अबहुश्रुत अर्थात् जिसने शास्त्रों का पूरा अध्ययन नहीं किया है अबोहीए-अबोध के भाव उत्पन्न करने वाला अबोहिया अबोध उत्पन्न करने वाले अब्भक्खाणाओ=सामने 2 मिथ्या दोषारोपण अभिंतरिया भीतरी अभविए अयोग्य अभविया अयोग्य अभिक्खणं बार-बार अभिगच्छइ प्राप्त करता है अभिजुंजिय-अपने वश में करके अभिलसति अभिलाषा करता है अभिलसणिज्जा=अभिलषणीय / अभिसमागम्म जान कर अभूएणं असत्य (आक्षेप से) अभ्भुठ्ठित्ता उद्यत अम्मा-पियरो माता-पिता अय-गोले लोह-पिण्ड अयत्ते=अयत्न-शील अयस-बहुले=बहुत अयश वाला अरति-रति चिन्ता और प्रसन्नता अलंकिय=अलंकृत अलंकिये=अलंकृत अलोग=अलोक को अवक्कमंति=चले जाते हैं अवण्णवं निन्दा करने वाला अवयरइ-अपकार करता है अवराहसि-अपराध पर अवहटु-लेसस्स=कृष्णादि अशुभ लेश्याओं ___ को दूर करने वाला अवाय-मइ निश्चय-रूप मति / मतिज्ञान ___का तीसरा भेद / अवि=समुच्चय के लिए है / अवितक्कस्स जो फल की इच्छा नहीं करता. | सा. कुतर्क-रहित, अच्छे विचारों वाला अविमणो शङ्का-रहित / सा. शून्यता___ रहित चित्त वाला अवोगडाए बिखरने के पहले अवोच्छिन्न व्यवच्छेद-रहित असंदिद्ध-बिना सन्देह के असंदिद्ध-वयणे संशय-रहित वचन बोलने वाला + +