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________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम / 455 5 - मूलार्थ-तत्पश्चात् बहुत से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से इस अर्थ को सुनकर और हृदय में विचार कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की वन्दना करते हैं उनको नमस्कार करते हैं / फिर वन्दना और नमस्कार कर उसी समय उसकी आलोचना करते हैं और पाप-कर्म से पीछे हट जाते हैं / यावत् यथायोग्य प्रायश्चित्त-रूप तप-कर्म में लग जाते हैं। टीका-इस सूत्र में भगवान् के उपदेश की सफलता दिखाई गई है / श्री भगवान् महावीर स्वामी जी ने जब नौ प्रकार के निदान कर्म और उनके पाप-रूप फल का दिग्दर्शन कराया तब बहुत से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों ने संसार-भ्रमण से भय-भीत हो कर और उन निदान कर्मों का भयङ्कर फल जान कर श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चरणों में उपस्थित हो उनकी विधि-पूर्वक वन्दना की और उनको नत-मस्तक होकर नमस्कार किया / वन्दना और नमस्कार करने के अनन्तर उनके सम्मुख ही अपने किये हुए निदान कर्मों की आलोचना की और उससे पीछे हट कर उसकी विशुद्धि के लिये श्री भगवान् से ही यथायोग्य तपकर्म ग्रहण किया / ___इस कथन से भली भांति सिद्ध होता है कि यदि किसी प्रकार से दोष लग जाय तो गुरु के पास जाकर उस दोष की आलोचना करनी चाहिए और उससे विशुद्ध होने के लिए प्रायश्चित्त अवश्य धारण करना चाहिए / जिस प्रकार रोग लगने पर उसको दूर करने के लिये वैद्य की शरण लेनी पड़ती है और उसकी औषध से आरोग्य-लाभ हो जाता है इसी प्रकार दोष लगने पर उसकी विशुद्धि के लिये गुरु की शरण लेनी चाहिए और प्रायश्चित-रूप औषध का अवश्य सेवन करना चाहिए / जिस प्रकार आरोग्य के सुखों को जानकर आत्मा उसकी प्राप्ति के लिये निरन्तर प्रयत्न करता ही रहता है ठीक उसी प्रकार जो आत्मा विशुद्ध आत्मा के सुखों का अनुभव करता है वही आत्मा आलोचनादि द्वारा आत्मविशुद्धि को ढूंढने में लग जाता है। कितने ही पुरुष अपने पापों को छिपाना ही अपनी योग्यता समझते हैं, किन्तु वह उनकी भूल है / वास्तव में पाप न करना ही प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता होती है / यदि भूल या असावधानी से कोई पाप-कर्म हो जाय तो आलोचनादि द्वारा उसकी शुद्धि कर लेनी ही उसकी योग्यता
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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