________________ New Poem दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / होंगे, देवों के काम-भोग भी इसी तरह अनिश्चित और बार-२ आने वाले होते हैं। यदि इस तप और नियम का कुछ फल विशेष है तो आगामी काल में जो ये नीच, अधम, तुच्छ, दरिद्र, कृपण और भिक्षुक कुल हैं इन में से किसी एक कुल में पुरुष-रूप से यह हमारी आत्मा उत्पन्न हो जाय जिससे यह दीक्षा के लिए सुख-पूर्वक निकल सकेगी / यही ठीक है / टीका-इस सूत्र मे नौवें निदान-कर्म का विषय वर्णन किया गया है | किसी निर्ग्रन्थ ने मन में विचार किया कि मोक्ष-मार्ग का साधन एक मात्र संयम-पर्याय ही है / किन्तु जब किसी व्यक्ति का किसी बड़े समृद्धि-शाली कुल में जन्म होता है तब उसके लिये संयम-मार्ग ग्रहण करने में अनेक विघ्न उपस्थित हो जाते हैं / देव और मनुष्यों के काम-भोग अनिश्चित और विनाश-शील हैं, अतः मेरा जन्म किसी ऐसे कुल में हो जिससे दीक्षा ग्रहण करने के समय मुझे किसी भी विघ्न का सामना न करना पड़े / मेरा जन्म किसी नीच (अधम-वर्ण) कुल, अधम या कम परिवार वाले कुल, धन-हीन कुल, कृपण(कंजूस)-कुल या भिक्षुक-कुल में से किसी एक में हो, जिससे मेरी आत्मा दीक्षा के लिये सुगमता से निकल सके / मुझे दीक्षा की अत्यन्त अधिक रुचि है और वह तब ही पूर्ण हो सकती है जब मैं किसी ऐसे कुल में उत्पन्न होऊ, जहां से दीक्षा के लिए। निकले हुए मुझे किसी तरह की बाधाओं का सामना न करना पड़े। - अब सूत्रकार इसी विषय से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं :_ एवं खलु समणाउसो! निग्गंथो वा निग्गंथी वा णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कते सव्वं तं चेवं / से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणागारियं पव्वइज्जा ? हंता, पव्वइज्जा / से णं तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झेज्जा जाव सव्व-दुक्खाणं अंतं करेज्जा णो तिणढे समढे | एवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! निर्ग्रन्थो वा (निर्ग्रन्थी वा) निदानं कृत्वा तत्स्थानमनालोच्य (ततः) अप्रतिक्रान्तः सर्वं तदेव / स नु मुण्डो