________________ 438 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा - - फिर सूत्रकार उक्त विषय से ही सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं : तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्सवि जाव पडिसुणिज्जा? हंता पडिसुणिज्जा से णं सद्दहेज्जा जाव? हंता ! सद्दहेज्जा / / से णं सीलवय जाव पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा? हंता! / पडिवज्जेज्जा | से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा णो तिणढे समढे / तस्य नु तथाप्रकारस्य पुरुषजातस्यापि-यावत् प्रतिश्रृणुयात् ? हन्त! प्रतिश्रृणुयात् / स नु श्रद्दध्यात् ? हन्त ! श्रद्दध्यात् / स नु शीलव्रत यावत् पौषधोपवासानि प्रतिपद्येत? हन्त ! प्रतिपद्येत / स नु मुण्डो भूत्वा आगारादनगारितां प्रव्रजेत् नायमर्थः समर्थः / पदार्थान्वयः-तस्स-उस णं-वाक्यालकारे तहप्पगारस्स-उस तरह के पुरिसजातस्सवि-पुरुष को भी जाव-यावत् श्रमण या श्रावकं यदि धर्म सुनावें तो क्या वह पडिसुणिज्जा-उसको सुनेगा? हंता-गुरु कहते हैं हां, पडिसुणिज्जा-सुनेगा से णं-वह फिर सद्दहेज्जा-श्रद्धा करेगा? जाव-यावत् विश्वास आदि करेगा? हंता-हां सद्दहेज्जा-श्रद्धा करेगा से णं-वह फिर सील-वय-शील-व्रत जाव-यावत् पोसहोववासाइं-पौषधोपवास आदि को पडिवज्जेज्जा-ग्रहण करेगा ? हंता-हां पडिवज्जेज्जा-ग्रहण करेगा से णं-वह फिर मुंडे भवित्ता-मुण्डित होकर आगाराओ-घर से निकल कर अणगारियं-अनगारिता (दीक्षा में) पव्वएज्जा-प्रव्रजित होगा णो तिणढे समढे-वह बात सम्भव नहीं है अर्थात् वह दीक्षा ग्रहण नहीं कर सकता / ___मूलार्थ-इस प्रकार के उस पुरुष को यदि कोई श्रमण या श्रावक धर्म-कथा सुनावे वह उस पर श्रद्धा और विश्वास करेगा? हां, करेगा | क्या वह शीलव्रत यावत्पौषधोपवास आदि व्रतों को ग्रहण करेगा? हां, ग्रहण करेगा किन्तु यह सम्भव नहीं कि वह मुण्डित होकर घर से निकल दीक्षा ग्रहण कर सके /