________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 385 और उस शाला में सदैव नाटक होते हैं और नाना प्रकार के वादित्र (बजते) रहते हैं / इस तरह वे मनुष्य सम्बन्धी उत्तमोत्तम भोगों को भोगते हुए विचरते हैं / 'कूटाकार-शाला' के विषय में वृत्तिकार लिखते हैं-"कूटाकारशालायामिति-कूटस्येव गिरिशिखरस्येवाकारो यस्याः सा कूटाकारा, यस्या उपर्याच्छादनं गिरिशिखराकारं सा कूटाकारेण शिखरीकृत्योपलक्षिता शाला कुटाकारशाला, उपलक्षणञ्चैतत्प्रासादादीनाम् / कूटाकार-शाला-ग्रहणं निर्जनत्वेन प्रधान-भोङ्गत्वाख्यापनार्थम् / अर्थात् जिसकी छत पर्वत की चोटी के समान हो, उसको कूटाकार-शाला कहते हैं / निर्जनता के कारण कूटाकार-शाला का ग्रहण किया गया है, क्योंकि इस में विशेष भोगों का भोग होता है / शेष सूत्रार्थ सुगम ही है / उक्त सूत्र से सम्बन्ध रखते हुए ही सूत्रकार अब कहते हैं:- . तस्सणं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अब्भुटुंति-भण देवाणुप्पिया ! किं करेमो ? किं उवणेमो? किं आहरेमो ? किं आविद्धामो ? किं भे हिय इच्छियं ? किं ते आसगस्स सदति ? जं पासित्ता णिग्गंथे णिदाणं करेति / ___तस्यन्वेकमप्याज्ञापयतो यावच्चत्वारः पञ्च वानुक्ता एवाभ्युपतिष्ठन्ति-भण देवानां प्रिय ! किं करवाम ? किं किमुपनयाम ? किमाहारयाम? किमातिष्ठाम? किं भवतां हृदिच्छितम् ? किं तवास्य-कस्य स्वदते ? यदृष्ट्वा निर्ग्रन्थो निदानं करोति / . पदार्थान्वयः-तस्स णं-उसके एगमवि-एक दास को भी आणवेमाणस्स-आज्ञा करने पर जाव-यावत् चत्तारि-चार पंच-पांच अवुत्ता चेव-बिना कहे ही अब्भुट्टेत्ति-कार्य करने के लिए उपस्थित हो जाते हैं देवाणुप्पिया-हे देव-प्रिंय ! भण-कहिए किं करेमो-हम आपके लिये क्या करें? किं आहरेमो-क्या भोजन आपको करावें ? किं भे हिय इच्छियं-आपके हृदय में क्या इच्छा है ? किं भे आसगस्स सदति-आपके मुख को कौन सी वस्तु स्वादिष्ट लगती है जं-जिसको पासित्ता-देखकर णिग्गंथे-निर्ग्रन्थ णिदाणं-निदान कर्म करेति-करता है।