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________________ - 382 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा - काम-वासना का उदय हो जाय किन्तु फिर भी वह संयम-मार्ग में पराक्रम करता हुआ विचरण करे और विचरण करते हुए महा-मातृक-जिनकी माताएं तथा, उपलक्षण से, पिता उच्च वंश के तथा रूप-शील आदि गुणों से सम्पन्न हैं, उग्र-पुत्र-उग्रा नाम 'आदिदेवेन रक्षकत्वेन स्थापितास्तद्वंशजा-स्तेषां पुत्राः' अर्थात् आदि देव के रक्षक रूप से नियत किए 'उग्र' वंश के पुत्र, और भोग-पुत्र-'आदिदेवेनावस्थापितो यो गुरुवंशस्तेषां पुत्राः' आदि देव के गुरु रूप से नियत किये हुए 'भोग' कुल के पुत्रों-को देखे अथवा उनमें से किसी एक को अनेक दास (अपने ही घर में उत्पन्न सेवक), दासी, किंकर (खरीद कर लाये हुए) और कर्मकरों (स्वामी को पूछकर काम करने वालों) से घिरा हुआ और छत्र, भृङ्गारी और झारी लेकर घर में जाते हुए और घर से बाहर निकलते हुए देखे अर्थात् किसी ऐश्वर्य-सम्पन्न व्यक्ति को देखे तो वह निदान कर्म करता है। इस सूत्र में 'उग्रपुत्राः 'भोगपुत्राः' के साथ साथ कोई ‘महा-साउया (महास्वादुकाः)' पाठ भी पढ़ते हैं जिसका अर्थ होता है कि जो कुमार लीला-विलास के अत्यन्त प्रेमी हैं | सूत्रगत “पुरादिगिंछाय” शब्द की वृत्ति में वृत्तिकार लिखते हैं-"पुराग्रेतनं-चिन्तनकरणात्पूर्वम् दिगिंछाएत्ति-इह 'अदिछति' इति 'देशी' वचनेन बुभुक्षोच्यते / सैवात्यन्तव्याकुलताहेतुरप्यसंयमभीरुतयाहार–परिपरकादि-वाञ्छाविनिवर्तिनी तद्भावस्ता तया / एवं पुरा पिवासेत्ति-पातुमिच्छा पिपासा तद्भावस्तत्ता तया इत्यादि अर्थात् देशी' प्राकृत में दिगिच्छा' शब्द का बुभुक्षा अर्थ है। सूत्र का तात्पर्य इतना ही है कि जब परीषहों का अनुभव किसी को होने लगता हे तो उसके चित्त में काम-वासना की उत्पत्ति हो जाती है / परिणाम यह होता हैं कि / ऐश्वर्य-शाली व्यक्तियों को देखकर उसका चित्त संकल्पों की माला गूंथने लग जाता है / अब सूत्रकार पूर्व-सूत्र से ही अन्वय रखते हुए कहते हैं: तदाणंतरं च णं पुरओ महाआसा आसवरा उभओ तेसिं नागा नागवरा पिट्ठओ रहा रहवरा संगल्लि से तं उद्धरिय सेय छत्ते अब्भुग्गयं भिंगारे पग्गहिय तालियंटे पवियन्न सेय-चामरा बाल-वीयणीए अभिक्खणं अभिक्खणं अतिजाति य निज्जाति य | सप्पभा स पुव्वावरं चणं बहाए (कय) बलिकम्मे ज़ाव
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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