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________________ अपनी परम्परा के विरुद्ध था / अतः उसे छोड़कर जब पण्डित प्रवर श्री जगतप्रसाद त्रिपाठी जी से इस विषय में चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि आचार्य सम्राट पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज का दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र प्रकाशित कराना श्रेष्ठ रहेगा / ___ पूज्य पितामहगुरुदेव उत्तर भारतीय प्रवर्तक भण्डारी श्री पदमचन्द जी महाराज का वह वचन स्मृति में तरंगायित हो उठा, जो उन्होंने वर्षों पूर्व मुझे कहा था कि “सुव्रत मुनि जी आप जिनवाणी, विशेषकर पूज्य श्री आत्माराम जी महाराज के ग्रन्थों का अध्ययन, चिन्तन मनन करो तथा उनका प्रचार प्रसार करो / " इसके स्मरण से मेरा तन मन पूज्य पितामह गुरुवर के प्रति अत्यन्त कृतज्ञता से भर उठा / पूज्य गुरुदेव आगम दिवाकर उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज जो कि हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद और चित्रों सहित जैन आगमों का प्रकाशन करके एक अपूर्व ऐतिहासिक कार्य की संरचना कर रहे हैं, जब उनसे इस विषय में वार्ता की तो उन्होंने कहा कि हां उक्त सूत्र प्रकाशित है और अब अनुपलब्ध है वैसे बहुत उत्तम है / इससे मन बहुत प्रसन्न हुआ तथा सूत्र प्रकाशन की भावना बलवती हो उठी। __पुरानी प्रकाशित प्रति की शोध प्रारम्भ हुई जो अन्नतः कोल्हापुर हाउस जैन उपाश्रय में विराजित महासती श्री स्वर्णकान्ता जी से दशाश्रुत स्कन्धसूत्र की पुरानी प्रति प्राप्त हुई / उसका मैंने मनोयोग पूर्वक अध्ययन किया / इससे श्रद्धा में परिमार्जन और बौद्धिक विकास हुआ / सूत्र प्रकाशन की भावना को मूर्त रूप देने का कार्य प्रारम्भ हुआ | ___ हमारे इस आगम सम्पादन में पूज्य गुरुदेव आगम दिवाकर उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी महाराज का पावन दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है / यही हमारे इस महत्वपूर्ण कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति बीज है / मैं गुरुदेव के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर भार मुक्त होऊ उसकी अपेक्षा अच्छा यही कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति संबल प्राप्त कर और अधिक आभारी बनूं। दशाश्रुतस्कन्ध सूत्रः-इसका अर्थ है जिसमें साधकों की विविध दशा-अर्थात्-अवस्थाओं का वर्णन हो, स्कन्ध का अर्थ है-समूह | इसे छेद सूत्र भी कहा जाता है / छेद शब्द का धर्म सम्बन्धी अर्थ बताते हुए आचार्यों ने लिखा है कि जिन बाह्य क्रियाओं से धर्म में बाधा न आती हो और जिस से निर्मलता की वृद्धि हो, उसे छेद कहते हैं अथवा जहां हिंसा, चोरी इत्यादि के भेदपूर्वक सावद्य क्रियाओं का त्याग किया
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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