________________ 1 दशमी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 347 we टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि जब श्रेणिक राजा ने राज-पुरुषों को आज्ञा प्रदान की तो उन्होंने इस प्रकार उसका पालन किया। आज्ञा-पालन विषय मूलार्थ में ही स्पष्ट है और विशेष उल्लेखनीय कुछ नहीं। सूत्र में बहुधा भूतकाल के स्थान पर वर्तमान काल का प्रयोग किया गया है, यह ऐतिहासिक होने से दोषाधायक नहीं। अब सूत्रकार श्री भगवान् के विषय में कहते हैं: तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव गामाणुगामं दूइज्जमाणे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तएणं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर एवं जाव परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। तस्मिन् काले तस्मिन् समये भगवान् महावीर आदि-करस्तीर्थकरो यावद् ग्रामानुग्राम द्रवन् यावदात्मानं भावयन् विहरति, तदानु राजगृहे नगरे शृंगाटक-त्रिक-चतुष्क-चत्वरेषु, एवं यावत्परिषन्निर्गता यावत्पर्युपासति। पदार्थान्वयः-तेणं कालेणं-उस काल और तेणं समएणं-उस समय में समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर गामाणुगाम-एक गांव से दूसरे गांव में दूइज्जमाणे-फिरते हुए जाव-यावत् अप्पाणं-अपने आत्मा की भावेमाणे-भावना करते हुए विहरइ-विचरते हैं तए णं-तब रायगिहे-राजगृह नयरे-नगर के सिंघाडग-दोराहे तिय-तिराहे चउक्क-चौराहे और अन्य चच्चर-प्रसिद्ध चौकों में एवं-इस प्रकार जाव-यावत् परिसा-परिषत् निग्गया-भगवान् के पास गई और जाव-यावत् पज्जुवासइ-धर्म-कथा सुनने के लिए उनकी उपासना करने लगी। मूलार्थ-उस काल और उस समय धर्म के संस्थापक, तीर्थ का संचालन करने वाले और अपनी आत्मा की भावना करते हुए विचरण करने वाले श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी एक गांव से दूसरे गांव में विचरते हैं। तब राजगृह नगर के दोराहे, तिराहे, चौराहे और अन्य