________________ - है 316 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् नवमी दशा टीका-इस सूत्र में भी विश्वास-घात का ही वर्णन किया गया है / राष्ट्र का नायक-राष्ट्र महत्तरादि, व्यापारियों का नेता-उनको अच्छे मार्ग में चलाने वाला तथा श्रीदेवताङ्कित पट्टबद्ध श्रेष्ठी-ये तीनों व्यक्ति बड़े यशस्वी होते हैं / अनेकों इनके आश्रय में रहकर अपनी जीवन-यात्रा करते हैं / जो इनमें से किसी को भी मारता है वह महा-मोहनीय कर्म के बन्धन मे आ जाता है / क्योंकि इनके विनाश से कई एक आश्रितों की आजीविका मारी जाती है और वे अत्यन्त दुःखित होकर दर-दर के भिखारी बन जाते हैं तथा अन्य कई प्रकार के संकटों में फंस जाते हैं / उनकी दुःख-भरी आहे हिंसक के ऊपर पड़ती हैं और फल-स्वरूप वह उक्त कर्म के बन्धन में आ जाता है / अब सूत्रकार उक्त विषय के ही सत्रहवें स्थान का विषय वर्णन करते हैं :बहजणस्स णेयारं दीव-ताणं च पाणिणं / एयारिसं नरं हंता महामोहं पकुव्वइ / / 17 / / बहजनस्य नेतारं द्वीप-त्राणं च प्राणिनाम् / एतादृशं नरं हत्वा महामोहं प्रकुरुते / / 17 / / .. पदार्थान्वयः-बहुजणस्स-बहुत से लोगों के णेयारं-नेता को च-तथा पाणिणं-प्राणियों की दीव-ताणं-द्वीप के समान रक्षा करने वाले एयारिसं-इस प्रकार के नरं-नर को हंता-मारकर, मारने वाला महामोह-महा-मोहनीय कर्म की पकुव्वइ-उपार्जना करता है / मूलार्थ-बहुत से लोगों के नेता को तथा द्वीप के समान प्राणियों के रक्षक को और इसी तरह के अन्य पुरुष को मार कर हत्यारा महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / टीका-इस सूत्र में परोपकारी की हिंसा-जनित महा-मोहनीय कर्म का विषय वर्णन किया गया है / जिस प्रकार द्वीप समुद्र से प्राणियों की रक्षा करता है उसी प्रकार जो प्राणियों की कष्ट में रक्षा करने वाला है अथवा दीप के समान जो अज्ञान-अन्धकार में विचरते हुए व्यक्तियों को ज्ञान के प्रकाश से उचित मार्ग दिखाने वाला है, ऐसे व्यक्ति की जो हिंसा करता है वह महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में फंस जाता है / संसार में परोपकारी जीव कष्ट में सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं / जैसे गणधरादि महा-पुरुषों ने स्वयं अनेक कष्ट सह कर जनता के हित के लिए प्रवचन की - -