________________ A - नवमी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 301 मूलार्थ-जो अग्नि जलाकर बहुत से लोगों को मार्गादि स्थान में घेर कर धूम से मारता है वह महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आ जाता है / ___टीका-इस सूत्र में भी त्रस-प्राणि-हिंसा-जनित महा-मोहनीय-कर्म-बन्धन का ही वर्णन किया गया है / जो व्यक्ति बहुत से लोगों को किसी मण्डप आदि स्थान में घेर कर चारों ओर से अग्नि जलाकर धूम से उनकी हिंसा करता है वह महा-मोहनीय कर्म का उपार्जन करता है / धूम से त्रस प्राणियों की हिंसा करना एक अत्यन्त निर्दयता-पूर्ण कर्म है / क्योंकि इससे प्राणी का दम घुट जाता है और उसका बड़े कष्ट से प्राण निकलता है / इस प्रकार जीवों की हिंसा करने वाला एक अत्यन्त पाप-पूर्ण और अज्ञान-प्रद कर्म के बन्धन में आ जाता है और इसके कारण उसको असंख्य काल तक दुःख भोगना पड़ता है / - यद्यपि प्रचण्ड अग्नि से अन्य जीवों की भी हिंसा होती है किन्तु मारने वाले के भाव उस समय केवल उन्हीं के मारने के होते हैं जिनको उसने घेरा हुआ है / अतः उन जीवों की हत्या ही उस समय उसके लिए महा-मोहनीय कर्म का मुख्य कारण है / 'समवायाङ्ग सूत्र' में इस स्थान को चतुर्थ स्थान माना गया है / अब सूत्रकार चतुर्थ स्थान का विषय कहते हैं :सीसम्मि जो पहणइ उत्तमंगम्मि चेयसा / विभज्ज मत्थयं फाले महामोहं पकुव्वइ / / 4 / / शीर्षे यः प्रहरति उत्तमाङ्गे चेतसा / विभज्य मस्तकं स्फोटयति महामोहं प्रकुरुते / / 4 / / पदार्थान्वयः-जो-जो सीसम्मि-शिर पर चेयसा-दुष्ट चित्त से उत्तम-गम्मि-शिर को उत्तमाङ्गे जान कर (इस पर प्रहार करने से मृत्यु अवश्य हो जायगी ऐसा विचार कर) पहणइ-प्रहार करता है और मत्थयं-मस्तक को विभज्ज-फोड़ कर फाले-विदारण करता है वह महामोह-महा-मोहनीय कर्म पकुव्वइ-उपार्जन करता है / मूलार्थ-जो शिर पर प्रहार करता है और मस्तक को फोड़ कर विदारण करता है, क्योंकि उत्तमाङ्ग के विदारण से मृत्यु अवश्य हो