________________ - . . .o re स्वरूप को भूल जाता है और जब तक वह उन पर फिर से विजय नहीं पा लेता तब तक वह उससे वंचित ही रहता है / जिस प्रकार सूर्य स्वतः प्रकाश-रूप है किन्तु मेघों के सामने हो जाने पर वह अपने उस रूप को नहीं दिखा सकता, यही दशा आत्मा की भी है / जिस प्रकार मेघों के हट जाने पर सूर्य धीरे-२ फिर अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो जाता है, ठीक इसी प्रकार कर्मक्षय अथवा क्षयोपशम भावों के होने पर आत्मा भी अपने निर्मल स्वरूप को देखने लगता है। किन्तु उसको इस तरह आत्म-दर्शी बनने के लिए साधनों की अत्यन्त आवश्यकता है / जिस प्रकार के बीज में अङ्कुर आदि होने पर भी उनको प्रकट करने के लिए साधनों की आवश्यकता है / ., वे साधन हैं धर्म-शास्त्रों का श्रवण और उन पर अपने अनुभव से विचार करना / जो व्यक्ति धर्म-शास्त्रों को सुनकर उन पर स्वबुद्धि से अनुशीलन करने लग जाता है, उसकी आत्मा अवश्य स्वात्म-प्रदर्शन की ओर झुक जाती है तथा उसको इस रास्ते में अन्य विशेष कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता | उसकी दशा ठीक वही होती है, जो एक पथभ्रष्ट पुरुष की ठीक रास्ते पर खड़ा कर देने से होती है / इतना होने पर भी लोगों को इस ओर मुड़ना कटु क्यों मालूम पड़ता है ? उत्तर स्पष्ट है कि यहां किसी को न तो अपनी स्तुति कहीं मिलेगी नांही शत्र की निन्दा / यहां तो है बहुत अभ्यास के बाद प्राप्त करने योग्य फल ऐह-लौकिक और पार-लौकिक शिक्षाओं का भण्डार | * कड़वी दवाई पीने को किसी का जी नहीं चाहता / किन्तु जो साहस करके इसको पी * लेता है, वह उसके बाद उसके गुणों पर मुग्ध हो जाता है / हाँ, जिन व्यक्तियों के क्षयोपशम भाव विशेष होते हैं, उनका स्वभावतः इस ओर आकर्षण हो जाता है / धर्म-शास्त्र, जैसे पहले भी कहा जा चुका है, वास्तव में उन्हीं ग्रन्थों का नाम है जिनमें अर्थ और काम की गाथाएं न हों किन्तु जिनमें मोक्ष-साधन का विषय तथा पदार्थों का सत्य स्वरूप वर्णन किया गया हो / यह सैद्धान्तिक, औपदेशिक और ऐतिहासिक तीन विभागों में विभक्त है / इसके द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग, गणितानुयोग और धर्मकथानुयोग चार अनुयोग भी कथन किए गए हैं / इनमें से द्रव्यानुयोग में सैद्धान्तिक विषय, चरणकरणानुयोग में चारित्र-विषय, गणितानुयोग में गणित विद्या का विषय और धर्म-कथानुयोग में ऐतिहासिक तथा औपदेशिक विषय आता है।