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________________ 226 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा - सम्यक्तया काय से स्पर्श करता हुआ और उसका पालन करता हुआ यत्नशील होता है / आगे त्रस प्राणियों को देख कर वह उनकी रक्षा के लिए अपने पैर ऊपर उठा लेता है / उनको संकुचित कर चलता है अथवा तिर्यक् पैर कर चलता है / विद्यमान मार्ग में यत्न-पूर्वक पराक्रम करता है, किन्तु बिना देखे ऋजु (सीधा) नहीं चलता / केवल ज्ञाति-वर्ग से उसके प्रेम-बन्धन का व्यवच्छेद नहीं होता, अतः वह ज्ञाति के लोगों में भिक्षा-वृत्ति के लिए जाता है अर्थात वह जाति के लोगों से ही भिक्षावृत्ति कर सकता है। __टीका-इस सूत्र में ग्यारहवीं प्रतिमा का विषय वर्णन किया गया है / इस प्रतिमा को ग्रहण करने वाला पहली प्रतिमा से दशवी प्रतिमा तक के सम्पूर्ण नियमों का विधि-पूर्वक पालन करता है / वह उद्दिष्ट-भक्त का सर्वथा परित्याग कर देता है और क्षुर से शिर के वालों को मुँडवा देता है अथवा उनका लुञ्चन करता है / क्षुर से शिरोमुण्डन अथवा केशों का लुञ्चन उसको विशेष विहित. विहित है / अतः सूत्र में लिखा है-"लुत्त-शिरोजः, वेति विकल्पार्थः केशलुञ्चन-करो वा' / 'वा' शब्द का तात्पर्य यह है कि यदि शक्ति हो तो वालों का लुञ्चन करें, यदि शक्ति न हो तो क्षुर से मुण्डन करा ले / उसको साधु का वेष-मुख पर वस्त्रिका बांधना, कक्ष में रजोहरण, कटि में चोल-पट्टक और वस्त्र का उपवेष्टन-धारण करना चाहिए / इस वेष को धारण कर वह साधु के आचारानुसार भण्डोपकरण आदि उपधि (उपकरण) धारण करे और श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए जो धर्म प्रतिपादन किया गया है उसका निरतिचार से पालन करता हुआ विचरे / सूत्र में कहा गया है कि धर्म को काय द्वारा स्पर्श करे / 'काय' शब्द देने का अभिप्राय यह है कि केवल मनोरथ मात्र से ही धर्म का स्पर्श न करे किन्तु शरीर द्वारा उसका भली भांति पालन करे और अतिचारादि से बचता रहे / इस प्रकार विचरते हुए यदि मार्ग में कहीं पर त्रस आदि जीव हों तो उस मार्ग को छोड़ कर अन्य किसी मार्ग को ग्रहण कर ले / अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि यदि अन्य कोई मार्ग न हो तो उस अवस्था में क्या करना चाहिए? इसका उत्तर सूत्रकार स्वयं देते हैं, जैसे-यदि अन्य कोई मार्ग न .
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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