________________ Ha है षष्ठी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 213 मूलार्थ-अब पांचवीं प्रतिमा कहते हैं। इस प्रतिमा वाले की सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है / उसके शीलादि व्रत ग्रहण किये होते हैं / वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत की भली भांति आराधना करता है | वह चतुर्दशी आदि पर्व दिनों में पौषध व्रत का अनुष्ठान करता है / वह एक रात्रि की उपासक-प्रतिमा का भी अच्छी तरह पालन करता है / वह स्नान नहीं करता, रात्रि-भोजन को त्याग देता है, धोती की लांग नहीं देता, दिन में ब्रह्मचारी रहता है और रात्रि में मैथुन क्रिया का परिमाण करने वाला होता है / इस प्रकार विचरता हुआ वह कम से कम एक दिन दो दिन या तीन दिन से लेकर अधिक से अधिक पांच मास तक विचरता है / यही पांचवीं उपासक-प्रतिमा है / - टीका-इस सूत्र में पांचवीं प्रतिमा का विषय वर्णन किया गया है / जो व्यक्ति पांचवीं प्रतिमा धारण करता है वह पूर्वोक्त चार प्रतिमाओं के नियम सम्यक्तया पालन कस्ता है / जैसे-सबसे पहले उसको सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है / वह शीलादि व्रतों को ग्रहण कर उनका निरतिचार से पालन करता है / वह सामायिक और देशावकाशिक व्रतों का भली भाँति अनुष्ठान करता है / वह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पौर्णमासी आदि पर्व दिनों में पौषध व्रत की आराधना करता है / इनके साथ-साथ वह एक रात्रि की कायोत्सर्ग-प्रतिमा का भी अच्छी तरह पालन करता है / इस पांचवीं प्रतिमा में पांच बातें विशेषतया धारण की जाती हैं / जैसे-पांच मास तक स्मान न करना, रात्रि भोजन का परित्याग करना, धोती की लांग न देना, दिन में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना और रात्रि में मैथन क्रियाओं का परिमाण करना / इन नियमों से पांचवीं प्रतिमा का विधि-पूर्वक पालन किया जाता है / यदि कोई व्यक्ति पांचवीं प्रतिमा को ग्रहण कर एक, दो, तीन या दस दिन अर्थात् पांच मांस से पहले अपनी इह-लीला संवरण कर ले (मर जाय) या दीक्षित हो जाय तो उसके लिए इसकी अवधि उतने ही दिनों की होगी / किन्तु जो जीवित हैं और दीक्षित नहीं हुए उनके लिए इसकी (पांचवीं प्रतिमा की) अवधि पांच मास की प्रतिमापादन की गई है / पहली प्रतिमाओं का समय भी इसके अन्तर्गत है / -