________________ है 184 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा इम-इसको नियल-बेड़ी जुयल-सांकल से संकोडिय-संकुचित कर मोडियं करेह-मोड़ डालो इम-इसके हत्थ-छिन्नयं करेह-हाथ छेदन कर डालो इम-इसके पाय-छिन्नयं करेह-पैर काट डालो इम-इसके, कण्ण छिण्णयं करेह-कान छेदन कर डालो, इमं-इसका, नक्क छिण्णयं करेह-नाक काट डालो इम-इसके उट्ठ-छिन्नयं करेह-ओष्ठ-छेदन करो इम-इसका सीस-शिर छिन्नयं-छिन्न करेह-करो इम-इसका मुख-छिन्नयं करेह-मुख छेदन करो इम-इसकी वेय-छिन्नयं करेह-जननेन्द्रिय का छेदन करो इम-इसका हिय-उप्पाडियं-हृदय उत्पादन करेह-करो एवं-इसी प्रकार नयण-नेत्र वसन-वृषण दसण-दाँत वयण-वदन मुख-मुख जिब्म-जिहा उप्पाटन-उत्पाटन करेह-करो इमं इसको घोलियं-दधिवत् मथन करेह-करो इमं इसको सूलाकायतयं-शूली पर चढ़ा दो इम-इसके सूलाभिन्नं-शूली से टुकड़े-टुकड़े कर डालो इम-इसके (शरीर पर शस्न आदि से व्रण-घाव कर) खार-वत्तियं करेह-नमक (सज्जी आदि को) सिञ्चन करो इम-इसको दब्भ-वत्तियं करेह-कुशा आदि तीक्ष्ण घास से काटो इम-इसको सीह-पुच्छयं करेह-सिंह की पूंछ से बांध दो इमं-इसको वसभ-पुच्छयं करेह-वृषभ की पूंछ से बांध दो इम-इसको दवग्गि-दद्धयं करेह-दावाग्नि में जला दो इम-इसको काकिणी-मंस-खावियं करेह-इसके मांस के कौड़ी के समान टुकड़े बना कर खिलाने का प्रबन्ध करो इम-इसका भत्त-पाण-भोजन और जल का निरुद्धयं करेह-निरोध करो इम-इसका जावज्जीव-जीवन पर्यन्त बंधणं करेह-बन्धन करो इमं इसको अन्नतरेणं-किसी और असुभेण-अशुभ कुमारेणं-कुमृत्यु से मारेह-मार डालो / इस प्रकार अन्याय-पूर्ण व्यवहार नास्तिक का अपनी बाहिरी परिषत् से होता है। मूलार्थ-इसको दण्डित और मुण्डित करो / इसका तिरस्कार करो / इसको मारो | इसको बेड़ी, जजीर और सांकल आदि से काष्ठादि पर बांध दो / इसके अङ्ग-अङ्ग को संकुचित कर मोड़ डालो / इसके हाथ, पैर, नाक, ओष्ठ, शिर, मुख और जननेन्द्रिय का छेदन करो / इसके हृदय, नेत्र, दांत, वदन, जिा ओर वृषणों का उत्पाटन करो / इसको वृक्ष से लटका दो, भूमि पर रगड़ो / इसके अधोद्वार से शूली प्रवेश कर मुंह से बाहर निकाल दो। इसके शूल से टुकड़े-टुकड़े कर डालो / इसके घावों पर नमक छिड़को / इसको कुशा आदि तीक्ष्ण घास -