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________________ - - 180 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् षष्ठी दशा मिच्छा दंडं पउंज्जइ / एवामेव तहप्पगारे पुरिस-जाए तित्तिर-वट्टग-लापय-कपोत-कपिंजल-मिय-महिस-वराह-गाहगोह-कुम्म-सरिसवादिएहिं अय-त्ते कूरे मिच्छा-दण्डं पउंजइ / अथ यथा-नामकः कश्चन पुरुषः कलम-मसूर-तिल-मुद्ग-माष-निष्पावकुलत्थालिसिंदक-यवयवा इत्येवमादिष्वयत्नः क्रूरो मिथ्या-दण्डं प्रयुञ्जति / एवमेव तथा-प्रकारः पुरुष-जातिस्तित्तिर-वर्तक-लावक-कपोत-कपिञ्जलमृग-महिष-वराह-ग्राह-गोधा-कूर्म-सरीसृपादिष्वयत्नः क्रूरो मिथ्या-दण्डं प्रयुञ्जति / पदार्थान्वयः-से-अथ जहा-जैसे नामए-नाम सम्भावना अर्थ में है केइ-कोई पुरिसे-पुरुष कलम-शाली विशेष मसूर-मसूर तिल-तिल मूंग-मूंग मास-माष (उड़द) निप्फाव-धान्य विशेष कुलत्थ-कुलत्थ आलिसिंदग-आलिसिंदक (धान्य विशेष) जवजवा-जवार एवमाइएहिं-इत्यादि अनेक प्रकार के धान्यों के विषय में अयते-अयत्न-शील कूरे-क्रूर कर्म करने वाला मिच्छादडं-मिथ्यादण्ड का पउंजइ-प्रयोग करता है | एवामेव-इसी प्रकार तहप्पगारे-इसी प्रकार के पुरिसजाए-पुरुष-जात तित्तिर-तित्तिर वट्टग-वटेर (एक जाति का पक्षी) मिय-मृग महिस-महिष वराह-शूकर गाह-ग्राह (जीव विशेष) गोह-गोधा कुम्म-कच्छुवा सरिसवादिएहिं-सर्पादि जीवों के विषय में अयत्ते-अयत्नशील क्रूरे-क्रूर (निर्दयी) मिच्छा-दण्डं-मिथ्या दण्ड का पउंजइ-प्रयोग करता है / ___ मूलार्थ-जैसे कोई पुरुष कलम, मसूर, तिल, माष, निष्फाव, कुलत्थ, आलिसिंदक और ज्वार आदि धान्यों के विषय में अयत्नशील हो क्रूरता से मिथ्या-दण्ड का प्रयोग करता है। इसी प्रकार कोई पुरुष विशेष तित्तिर, बटेर, लावा, कबूतर, कपिञ्जल, मृग, महिष (भैंस), वराह (शूकर), गाह, गोधा, कछुआ और सादि जीवों के विषय में अयत्नशील हो क्रूरता से मिथ्या-दण्ड का प्रयोग करता है।
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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