________________ 00000 8 156 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् पंचमी दशा से अपने आप क्षय हो जाती है इसी प्रकार केवल एक मोहनीय कर्म के नाश होने पर शेष सब कर्म अनायास ही नष्ट हो जाते हैं, क्योंकि सब कर्मों में मोहनीय कर्म ही प्रमुख है और प्रमुख के नाश होने पर गौण की सत्ता नहीं रह सकती / सूत्रकार पुनः उक्त विषय का ही विवरण करते हैं :सक्क-मले जहा रुक्खे सिंचमाणे ण रोहति / एवं कम्मा ण रोहति मोहणिज्जे खयं गए / / 14 / / शुष्क-मूलो यथा वृक्षः सिच्यमानो न रोहति / एवं कर्माणि न रोहन्ति मोहनीये क्षयं गते / / 14 / / पदार्थान्वयः-जहा-जैसे सुक्क-मूले-शुष्क-मूल रुक्खे-वृक्ष सिंचमाणे-जल से सिञ्चन किए जाने पर भी ण रोहति-पुनः अङ्कुरित नहीं होता एवं-इसी प्रकार मोहणिज्जे-मोहनीय कर्म के खयं गए-क्षय हो जाने पर कम्मा-शेष सब कर्म भी ण रोहंति-उत्पन्न नहीं होते। मूलार्थ-जैसे शुष्क वृक्ष जल से सिञ्चन किये जाने पर अङ्कुरित नहीं होता इसी प्रकार मोहनीय कर्म के नष्ट होने पर अन्य कर्म भी उत्पन्न नहीं होते / ____टीका-इस सूत्र में भी सूत्रकार ने उपमा का ही आश्रय लिया है / जिस प्रकार वृक्ष की जड़ सूख जाने पर जल-सिञ्चन से भी वह पुनः अंकुरित नहीं होता इसी प्रकार मोहनीय कर्म के सर्वथा क्षय होने पर अन्य कर्म उत्पन्न नहीं होते, क्योंकि संसार में जन्म-मरण-संतति मोहनीय कर्म द्वारा ही होती है, जब मूल का ही नाश हो जायगा तो भव-रूपी अंकुर कभी भी उत्पन्न न हो सकेंगे / अतः सम्यग्-ज्ञान, सम्यग्-दर्शनादि मोहनीय कर्म के नाशक कारणों का सदैव आराधन करना चाहिए / सूत्रकार पुनः उक्त विषय का ही विवरण करते हैं:जहा दड्ढाणं बीयाणं न जायंति पुण अंकुरा / . कम्म-बीयेसु दड्ढेसु न जायंति भवंकुरा / / 15. / /