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________________ 142 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् पंचमी दशा यदि जाति-स्मरण ज्ञान के अनन्तर उसको किसी समय शान्ति पूर्वक देव-दर्शन हो जाय, जिससे वह देवर्द्धि, देव-द्युति, देवानुभाव और वैक्रिय करणादि पूर्णशक्तियों से युक्त प्रधान देवों की ज्योति का दर्शन कर सके, तो उसका चित्त समाधि प्राप्त करता है, क्योंकि यदि शास्त्रों से श्रवण किये हुए देव-स्वरूप का समाधि में साक्षात् रूप से दर्शन हो जायगा तो चित्त स्वयं ही समाधि की ओर ढल जायगा / ___ इसी के आधार बहुत से वादि कल्पना करते हैं कि समाधि में श्री भगवान् के दर्शन होते हैं, किन्तु वह वास्तव में देव-दर्शन ही होता है ध्यान रहे कि देव-दर्शन शान्तरूप और द्युति-सम्पन्न ही होता है / जिस आत्मा को समाधि का प्रादुर्भाव हो जाता है, उसको अवधि-ज्ञान भी हो जाता है और उससे वह सम्पूर्ण सांसारिक पदार्थों को हस्तामलकवत् देखने लग जाता है जिससे उसकी आत्मा को एक अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है और वह फिर समाधिस्थ हो जाता है / ___ऊपर कहे हुए सारे फल एक धर्म-चिन्ता (अनुप्रेक्षा) पर ही निर्धारित हैं अतः प्राणी मात्र को सबसे पहिले धर्म-चिन्ता अवश्य करनी चाहिए / ' ... अब सूत्रकार अवशिष्ट पांच समाधियों का विषय वर्णन करते हैं:- . ओहि-दसणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा ओहिणा लोयं पासित्तए, मण-पज्जव-णाणे वा से असमुप्पण्ण-पुब्वे समुप्पज्जेज्जा अंतो मणुस्स क्खित्तेसु अड्डाइज्जेसु दीव-समुद्देसु सण्णिणं पंचिंदियाणं पज्जत्तगाणं मणो-गए भावे जाणित्तए, केवल-णाणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवल-कप्पं लोयालोयं जाणित्तए, केवल-दसणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा केवल-कप्पं लोयालोयं पासित्तए, केवल-मरणे वा से असमुप्पण्ण-पुव्वे समुप्पज्जेज्जा सव्व-दुक्ख-पहाणाए / / 10 / /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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