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________________ चतुर्थी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / - नहीं होगा, जिससे शिष्य-समुदाय का पठन, पाठन और समाधि आदि निर्विघ्न हो सकेंगे, साथ ही क्रोधादि की शान्ति से गण में शान्ति भङ्ग करने वाले 'तू' 'तू' आदि शब्द भी नहीं होंगे / कलह के मिट जाने से संयम और संवर में वृद्धि होगी तथा ज्ञान, दर्शन और चरित्र सम्बन्धी समाधियां भी उत्पन्न होने लगेंगी / साधुगण अप्रमत्त होकर संयम और तप से अपनी आत्मा की भावना करते हुए अर्थात् निज स्वरूप का दर्शन करते हुए विचरण करेंगे / इसी का नाम भारप्रत्यवरोहणता विनय है / __इस प्रकार स्थविर भगवन्तों ने आठ प्रकार की गण-सम्पदा का वर्णन किया है / यह आठ प्रकार की सम्पदा प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपादेय है / इस दशा के पाठ से गणी और शिष्यगण को अपना-अपना कर्तव्य भली भांति ज्ञात हो जाता है। .. क्योंकि वास्तव में भाव-सम्पदा ही आत्म-स्वरूप के प्रकट करने में सामर्थ्य रखती है, अतः प्रत्येक प्राणी को उचित है कि वह भाव-संपदा द्वारा अपने आत्मा को अलङ्कृत करता हुआ मोक्षार्थी बने / - इस प्रकार श्री सुधा स्वामी जी अपने सुशिष्य श्री जम्बू स्वामी जी से कहते हैं "हे जम्बू स्वामिन् ! जिस प्रकार मैंने श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी जी से इस दशा का अर्थ श्रवण किया है उसी प्रकार मैंने तुमको सुना दिया है किन्तु अपनी बुद्धि से मैंने कुछ भी नहीं कहा है / / mege
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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