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________________ चतुर्थी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 125 मूलार्थ-वर्ण-सज्वलनता किसे कहते हैं ? वर्ण-सज्वलनता चार प्रकार की प्रतिपादन की गई है, जैसे-यथातथ्य गुणों के बोलने वाला अवर्णवादी को निरुत्तर करने वाला, वर्णवादी को धन्यवाद देने वाला और अपनी आत्मा से वृद्धों की सेवा करने वाला / इसी का नाम वर्ण-सञ्ज्वलनता है | टीका-इस सूत्र में वर्ण-सज्वलनता नाम विनय का वर्णन किया गया है | 'वर्ण' पद 'वर्ण' धातु से निष्पन्न होता (बनता) है, उसका अर्थ वचन विस्तार करना है / इस स्थान पर 'वर्ण-सज्वलनता' इस सम्पूर्ण पद का अर्थ गुणानुवाद अर्थात् यशोगान करना है / इसके चार भेद प्रतिपादन किये गये हैं / जैसे-शिष्य को चाहिए कि जो सदा आचार्य आदि की निन्दा करे उसका प्रतिहनन करना चाहिए अर्थात् उचित प्रत्युत्तर देकर उसको निरुत्तर करना चाहिए / और उसको युक्तियों से ऐसा शिक्षित करना चाहिए कि भविष्य में वह ऐसे दुष्ट कार्य करने का साहस तक न कर सके | जो व्यक्ति गण या आचार्य आदि का यशोगान करे उसको धन्यवाद देकर उत्साहित करना चाहिए और जनता को उसकी योग्यता का परिचय देना चाहिए / इसके साथ ही अपने आत्मा द्वारा वृद्धों की सेवा करनी चाहिए / यदि वृद्ध समीप हों तो उनकी यथोचित सेवा भक्ति करनी चाहिए और यदि दूर बैठे हों तो भी उनकी अङ्ग-चेष्टा करने पर वहीं उनकी सेवा में उपस्थित होना चाहिए / .. ___ इस सूत्र से प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा लेनी चाहिए कि वास्तव में जो गुण विद्यमान हों उन्हीं का वर्णन करना चाहिए, अविद्यमान गुणों का नहीं किन्तु जो आचार्य आदि और गण की किसी प्रकार भी निन्दा करे उसको शिक्षित अवश्य करना चाहिए / इसके अनन्तर सूत्रकार भार–प्रत्यवरोहणता-विनय का वर्णन करते है: से किं तं भार-पच्चोरुहणया? भार-पच्चोरुहणया चउविहा पण्णत्ता, तं जहा-असंगहिय-परिजण-संगहित्ता भवइ, सेहं आयार-गोयर-संगहित्ता भवइ, साहम्मियस्स गिलायमाणस्स अहाथामं वेयावच्चे अब्भुट्टित्ता भवइ, साहम्मियाणं अधिगरणंसि
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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