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________________ - - - "SER है चतुर्थी दशा.. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 123 इसके अनन्तर सूत्रकार अब सहायता-विनय का विषय वर्णन करते हैं: से किं तं साहिल्लया ? साहिल्लया चउबिहा पण्णत्ता, तं जहा-अणुलोम-वइ-सहिते यावि भवइ, अणुलोमकाय-किरियत्ता, पडिरूव-काय-संफासणया, सव्वत्थेसु अपडिलोमया / से तं साहिल्लया / / 2 / / अथ के यं सहायता? सहायता चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-अनुलोम-वाक्-सहितश्चापि भवति, अनुलोम-काय-क्रियावान्, प्रतिरूप-काय-संस्पर्शनता, सर्वार्थेष्वप्रतिलोमता | सेयं सहायता / / 2 / / पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सी साहिल्लया-सहायता है? (गुरू कहते हैं) साहिल्लया-सहायता-विनय चउव्विहा–चार प्रकार का पण्णत्ता-प्रतिपादन किया है तं जहा-जैसे-अणुलोम-अनुकूल वइ-वचन सहिते यावि-तथा हितकारी वचन बोलने वाला भवइ-है अणुलोम-अनुकूल काय-किरियत्ता-कार्य-क्रिया करने वाला अर्थात् सेवा करने वाला पडिरूवकाय-प्रतिरूप काय से संफासणया-संस्पर्शनता अर्थात् जिस तरह दूसरे को सुख मिले उसी तरह उसकी सेवा करने वाला सव्वत्थेसु-गुरू आदि के सब कार्यों में अपडिलोमया-अकुटिलता | से तं-यही साहिल्लया-सहायता-विनय है / मूलार्थ-सहायता-विनय कौन सा है? सहायता-विनय चार प्रकार का प्रतिपादन किया गया है, जैसे-अनुकूल काय से सेवा (गुरुभक्ति) करना, जिस प्रकार दूसरे को सुख पहुंचे उसी प्रकार उसकी सेवा करना, गुरू आदि के किसी कार्य में भी कुटिलता न करना / यही सहायता-विनय है। टीका-इस सूत्र में सहायता-विनय के विषय में कथन किया गया है / उसके चार भेद प्रतिपादन किये हैं; उनमें से पहला अनुकूल और हितकारी वचनों का बोलना है / अर्थात् पहिले गुरू के वचनों का सत्कार-पूर्वक श्रवण करना चाहिए और फिर अपने मुख से कहना चाहिए "जिस प्रकार पूज्य भगवान् प्रतिपादन करते हैं, यह विषय वास्तव में
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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