________________ है चतुर्थी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 1 ___ 121 ___टीका-इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि जब गणी शिष्य को भली भांति विनय की शिक्षा प्रदान कर दे तो शिष्य का कर्तव्य है कि वह गणी के प्रति विनयशील बने / गणी के प्रति विनय के चार भेद वर्णन किये गये हैं, जैसे-गण के लिए उपकरण उत्पन्न करना, निर्बलों की सहायता करना, गण या गणी के गुण प्रकट करना और गण के भार का निर्वाह करना / सबका सूत्रकार पृथक् व्याख्यान करेंगे किन्तु यहां यह जान लेना आवश्यक है कि इस सूत्र में विनय-प्रति-पत्ति का अर्थ गुरू-भक्ति गुरू की आज्ञानुसार काम करने से होती है। अब सूत्रकार उपकरणोत्पादनता का विषय वर्णन करते हैं: से किं तं उवगरण-उप्पायणया? उवगरण-उप्पायणया चउव्विहा पण्णत्ता, तं.जंहा-अणुप्पण्णाणं उवगरणाणं उप्पाइत्ता भवइ, पोराणाणं उवगरणाणं सारक्खित्ता संगोवित्ता भवइ, परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवइ, अहाविधि संविभइत्ता भवइ / से तं उवगरण-उप्पायणया / / 1 / / ' अथ काऽसाऽउपकरणोत्पादनता? उपकरणोत्पादनता चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, ताथा-अनुत्पन्नानामुपकरणानामुत्पादिता भवति, पुरातनानामुपकरणानां संरक्षिता, संगोपिता भवति, परीतं ज्ञात्वा प्रत्युद्धर्ता भवति, यथाविधि संविभक्ता भक्ति / सेयमुपकरणोत्पादनता ||1|| पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सी उवगरण-उप्पायणया-उपकरण-उत्पादनता है ? उवगरण-उप्पायणया-उपकरण-उत्पादनता चउव्विहा-चार प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की है, तं जहा-जैसे-अणुप्पण्णाणं-जो अनुत्पन्न उवगरणाणं-उपकरण हैं उनको उप्पाइत्ता भवइ-उत्पन्न करने वाला है, पोराणाणं-पुराने उवगरणाणं-उपकरणों का सारक्खिता-संरक्षण और संगोवित्ता-संगोपन करने वाला भवइ-है परित्तं-गिनती में आने वाले उपकरणों में (कमी) जाणित्ता-जानकर पच्चद्धरित्ता-प्रत्युद्धार करने वाला