________________ 40 74 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् तृतीय दशा अतः सिद्ध हुआ कि विनय-धर्म की पालना के लिए जो कुछ भी भिक्षा से प्राप्त हो उसके लिए सब से पहले गुरू या रत्नाकर को ही निमन्त्रण करे / - अब सूत्रकार आहार देने के विषय की आशातना का वर्णन करते हैं:___ सेहे रायणिएण सद्धिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिगाहित्ता तं रायणियं अणापुच्छित्ता जस्स जस्स इच्छइ तस्स तस्स खधं खधं तं दलयति आसायणा सेहस्स / / 17 / / शैक्षो रात्निकेन सार्द्धम् अशनं वा पानं वा खादिम वा स्वादिम वा प्रतिगृह्य तद-रालिकमनापृच्छय यस्मै-यस्मै इच्छति तस्मै-तस्मै प्रचुर-प्रचुर ददात्याशातना शैक्षस्य / / 17 / / ___ पदार्थान्वयः-सेहे-शिष्य रायणिएण-रत्नाकर के सद्धिं-साथ असणं अशन वा अथवा पाणं-पानी वा-अथवा खादिम-खादिम वा-अथवा साइमं-स्वादिम को वा-अथवा अन्य उपकरणादि पडिगाहित्ता-लेकर उपाश्रय में आया. और तब तं-उस आहार को रायणियं-रत्नाकर को अणापुच्छित्ता-बिना पूछे जस्स जस्स-जिस जिसको इच्छइ-चाहता है तस्स तस्स-उस उसको खधं खंध-प्रचुर तं-वह आहारादि दलयति-देता है तो सेहस्स-शिष्य को आसायणा-आशातना होती है। ___मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर के साथ अशन, पानी, खादिम और स्वादिम को लेकर उपाश्रय में आवे और रत्नाकर को बिना पूछे यदि जिसको चाहता है प्रचुर आहार देता है तो उस (शिष्य) को आशातना लगती है / टीका-इस सूत्र में प्रकाश किया गया है कि जब शिष्य रत्नाकर के साथ अशन, पानी, खादिम और स्वादिम पदार्थों को लेकर उपाश्रय में आवे तो उसको उचित है कि बिना रत्नाकर की आज्ञा के किसी को कुछ न दे / यदि वह अपनी इच्छा से जिसको जितना चाहता है दे देता है तो उसको आशातना लगती है | किन्तु यदि कोई रोगी और तपस्वी आवश्यकता में हो तो उसको देने में आशातना नहीं होती, क्योंकि वहां रक्षा और योग्यता पाई जाती है।