________________ है तृतीय दशा: हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 615 के बढ़ने से ज्ञान, दर्शन और चरित्र सम्बन्धी आशातनाओं का होना अनिवार्य हैं। इनके अतिरिक्त द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, श्रुत, देव, देवी, श्रुत-देव, श्रावक, श्राविका, प्राणी, भूत, जीव, सत्व और अरिहन्तादि पंच परमेष्ठी आदि की आशातनाओं के अनेक कारण वर्णन किये गए हैं, उनको उपलक्षण से जान लेना चाहिए | जिस व्यक्ति के ज्ञानादि पहिले से ही शिथिल हैं वह उनकी आराधना किस प्रकार कर सकता है / अतः आशातना दूर करके ज्ञान आदि की भली प्रकार आराधना करनी चाहिए / अब सूत्रकार मूल सूत्र में इस विषय का वर्णन करते हुए कहते हैं: सुयं मे आउसं तेणं भगवआ एवमक्खायं; इह खलु थेरेहिं भगवंतेहि तेतीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, कयरे खलु ताओ भगवंतेहिं तेतीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ, इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेतीसं आसायणाओ पण्णत्ताओ / तं जहाः श्रुतं मया, आयुष्मन्, तेन भगवतैवमाख्यातं, इह खलु स्थविरैर्भगवदभिस्त्रयस्त्रिंशदाशातनाः प्रज्ञप्ताः | कतराः खलु ताः स्थविरैर्भगवदभिस्त्रयस्त्रिंशदाशातनाः प्रज्ञप्ताः / इमा खलु ताः स्थविरैर्भगवद्भिस्त्रयस्त्रिंशदाशातनाः प्रज्ञप्ताः / तद्यथाः पदार्थान्वयः-आउसं--हे आयुष्मन् शिष्य ! मे-मैंने सुयं-सुना है तेणं-उस भगवआ-भगवान् ने एवं-इस प्रकार अक्खायं-प्रतिपादन किया है / इह-इस जिन-शासन में थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने तेतीसं-तेतीस आसायणाओ-आशातनाएं पण्णत्ताओ-प्रतिपादन की हैं / शिष्य पूछता है कयरे-कौनसी खलु-निश्चय से ताओ-वे थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने तेतीसं-तेतीस आसायणाओ-आशातनाएं पण्णत्ताओ-प्रतिपादन की हैं ? गुरू उत्तर देते हैं इमाओ-ये खलु-निश्चय से ताओ-वे थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने तेतीसं-तेतीस आसायणाओ-आशातनाएं पण्णत्ताओ-प्रतिपादन की हैं / तं जहा-जैसे: - -