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________________ द्वितीया दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 55 5 किसी 2 लिखित प्रति में निम्नलिखित पाठ-भेद भी देखने में आता है: “आउट्टिआए मूल-भोयणं वा, पवाल-भोयणं वा, पत्त-भोयणं वा पुप्फ-भोयणं वा फल-भोयणं वा बीय-भोयणं वा तया भोयणं वा हरिय-भोयणं वा कंद-भोयणं वा रूढय-भोयणं वा भुंजमाणे सबले" / / 18 / / समवायाङ्ग सूत्र में निम्नलिखित पाठ है: “आउट्टिआए मूल–भोयणं वा, कंद-भोयणं वा तया-भोयणं, पवाल-भोयणं, पुप्फ–भोयणं, हरिय-भोयणं वा भुंजमाणे सबले " / / 18 / / -- किन्तु इन सब सूत्रों का भाव एक ही है / अर्थात् सचित्त और अप्राशुक भोजन नहीं करना चाहिए / अब सूत्रकार जल-काय जीवों की रक्षा के विषय में कहते हैं:अंतो संवच्छरस्स. दस दग-लेवे करेमाणे सबले / / 16 / / अंतः सम्वत्सरस्य दशोदकलेपान् कुर्वन् शबलः / / 16 / / पदार्थान्वयः-संबच्छरस्स-एक संवत्सर के अंतो-भीतर दस-दश दग-पानी के लेवे-लेप करेमाणे-करते हुए सबले-शबल दोष लगता है / __ मूलार्थ-एक सम्वत्सर के भीतर दश जल के लेप करने से शबल दोष होता है। टीका-इस सूत्र में पूर्व-कथित नवम सूत्र का विषय ही फिर से स्फुट किया गया है / जैसे-नवम सूत्र में वर्णन किया गया था कि एक मास के भीतर तीन बार जलाशयों में अवगाहन करने से शबल दोष होता है / यह आपाततः (अपने आप ही) आ जाता है कि एक या दो बार जल-अवगाहन करने से न तो शबल-दोष और न ही श्रीभगवद्-आज्ञा-भङ्ग दोष होता है / / ___इस कथन से कुछ वक्र जड़-बुद्धि यह न विचार करें कि एक मास में तीन बार जलावगाहन से शबल दोष होता है और यदि दो बार किया जाय तो नहीं होता, अतः एक वर्ष के भीतर 24 बार नदी आदि जलाशयों के अवगाहन करने में कोई आपत्ति नहीं / उन शिष्यों के इस तर्क को लक्ष्य में रखते हुए इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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